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Friday 11 April 2014

तना तनी

हम शादी की ३३ सालिगरह मना चुके हैं जिसे सुनकर या पढ़ कर ऐसा लगता है कि हमारी आपस में ख़ूब बनती है और ख़ूब छनती है । क्यूँ नहीं साब क्यूँ नहीं । ये और बात है कि यदा कदा विचार नहीं मिलते छोटी मोटी बातों में । स्थिति को ज़रा उदाहरण से स्पष्ट करना ठीक रहेगा वरना आप से भी विचार न मिलने की संभावना बढ़ सकती है । और मेरी इच्छा है की कम से कम आप तो मेरा साथ देते रहेंे ।


                                    


आप इन दो तौलियों को ज़रा देखें । मैंने ितरछा सा टांगा है हरा वाला ताकी ज़्यादा एिरये में हवा लगे और तौलिया जल्दी सूख जाए । दूसरा सीधा सीधा टांगा है वो मेरा नहीं है । 
'ऐसे आड़ा ितरछा टाँग देते हो कितना भददा लग रहा है इसे ठीक करो'
लो कर लो बात । अब इस बात पर मुक़दमा तो नहीं चलाया जा सकता ना । क्या िवचार है आपका आड़ा ितरछा ही रहने दिया जाए या सीधा कर दिया जाए ?

अब उस दिन रात दस बजे घूम घाम कर वापस आए । फटाफट कपड़े उतार कर डाइिनंग टेबल पर डाले और दूसरे पहन लिए । जूते उतार कर एक तरफ़ सरकाए और चप्पल पहन ली । चप्पल फेंक कर िबसतर में छलाँग लगा दी । वाह अब आराम से सोया जा सकता है । आप भी तो ऐसा ही करते होंगे ? पर औरडर हो गया । तुरंत आदेश हो गया :
'इन्हें ज़रा अलमारी में टाँग दो भई और जूतों को रैक में ढंग से रख दो । दुबारा नहीं पहनोगे क्या ?'
अब इस चक्कर मे १५ िमनट की नींद ख़राब भई उसका क्या ?
                                                                         
  













आप शोपिंग ही ले  लीजिए । साड़ी की दुकान में चालीस मिनट हो चुके थे । पानी भी पी लिया था, ठंडा भी पी लिया था अब चाय आ गई पर साड़ी न पसंद आई अब तक । पर सेल्स मैन कमबख़्त होिशयार था । 
'भैंजी इतमीनान से देिखये जी । चीज़ पसंद आए तभी लेना जी । हमारा तो काम ही यही है जी । चाय लो जी आप भाईसाब' । 
एक घंटा दस मिनट में एक साड़ी पसंद आई । उस पर कनपटी में गुर्राहट सुनाई दी:
'पास मे बीराजमान हो कभी कलर वलर पर राय तो दे दिया करो । घुघू की तरह बैठै हो ।'



















बस इन छोटी छोटी बातों के अलावा हमारे सभी िवचार िमलते हैं । 
आप क्या लोगे चाय या ठंडा ?

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