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Sunday 22 June 2014

रोज़मर्रा के मुखौटे

शहरी ज़िंदगी की रफ़्तार में और शहरी ज़िंदगी की भीड़भाड़ में क़ुदरत से थोड़ा दूर हो जाते हैं । मुझे तो लगता है की हम अपने आप से भी दूर हो जाते हैं । घर में दीवारें दफ़्तर में दीवारें । हरियाली, झील और पर्वतों से दूर । विचारों का दायरा छोटा होने लगता है और मुड़ मुड़ के उन्हीं चेहरों पे घूमता रहता है ।अच्छे लगें या न लगें झेलते रहते हैं । और इन हालात में हम कई तरह के मुखौटे इस्तेमाल करते रहते हैं । किसी मुखौटे के पीछे छुप जाते हैं और कभी नक़ली मूड का मुखौटा पेश कर देते हैं ।

सुबह उठ कर, नहा धो कर तैयार होने तक मान लीजिए की हम नॅारमल हैं । अब आ गए हम नाश्ते के टेबल पर, एक नज़र पेपर पर, दूसरी नाश्ते पर और तीसरी बच्चे पर जिसके नम्बर कम आ रहे हैं । धीरे से नॅारमल चेहरा बदलता है और गम्भीर मुखौटा चेहरे पर आ जाता है जिसमें ज्ञान, रौब और अनुभव भरा है । मुखौटा बच्चे से पढ़ाई न करने के कारण नहीं पूछता उपदेश देता है - अबे नादान बच्चे कम नम्बर ले कर मज़दूरी करेगा क्या ? पढ़ ले मैं कह रहा हूँ पढ़ ले । 

दफ़्तर पहुँच कर देखा की उफ़ बड़ा बाॅस इंस्पेकशन के लिए तैयार बैठा है । नया मुखौटा निकल आया जिसमें - मैं एफीशैंट हूँ + तू राजा मैं रंक + अबे रिपोर्ट ठीक दे देना - के मिलेजुले भाव थे । घंटी बजाई और चपरासी को रौद्र रूप का मुखौटा दिखाया - (अबे तेल देख तेल की धार देख, प्रमोशन का सवाल है ) भाग के पहले पानी ला फिर चाय ला बिना चीनी के, साथ में बिस्किट, रोस्टेड काजू, बदाम और नमकीन ले कर आ । तुरंत । 

साहब विदा हुए लम्बी और गहरी ठंडी साँस भर के मुखौटा उतार दिया । बाॅस की बातों से समझ नहीं आया की प्रमोशन के लिए हाँ करेगा या ना । काम करने का मूड तो आॅफ हो चुका था पर स्टाफ़ के सामने तो ऐसा ठीक नहीं रहता । इसलिए काम करने वाला मुखौटा फिर से पहन लिया और टेबल पर डायरी और दो फ़ाइलें खोल कर रख दीं । पर ध्यान बाॅस की बातों में ही रहा । 

शाम को घर पर कुछ मेहमान आए हुए थे । कुछ ने हाथ मिलाया और कुछ ने पैर छुए । पैर छूने वालों को कई बार मना किया पर न वो माने न हम । फिर से आशीर्वाद मोड के नक़ली मुखौटे को लगा कर आशीर्वाद दे दिए जबकी ध्यान बाॅस की बातों में ही उलझा हुआ था । कुछ गपशप हुई  जिसमें मुस्कराहट भरे मुखौटे से बातचीत होती रही । हो सकता है उन्होंने भी ऐसे ही मुखौटे पहने हों ?

दिन गुज़र गया और रात के अंधेरे में सारे मुखौटे ग़ायब हो गए । 

Wooden Masks, Bhaktapur, Nepal
आप को कौन सा पसंद है ?

2 comments:

A.K.SAXENA said...

Bahut sahi vishleshan kiya hai aapne. Hum sabka yahi haal hai.
राम तुम्हारे युग का तो
रावण भी कितना अच्छा था।
दस चेहरे रखता था,लेकिन
दस के दस *बाहर रखता था*।

Harsh Wardhan Jog said...

A.K.Saxena जी धन्यवाद सुंदर टिपण्णी के लिए