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Sunday 11 January 2015

लोहड़ी की लोक कथा

लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले १३ जनवरी को मनाया जाता है। लोहड़ी से सम्बन्धित कई तरह की लोक कथाएँ हैं। ये लोक कथाएँ धार्मिक न होकर सांस्कृतिक ज़्यादा हैं। लोहड़ी मौसम या फ़सलों के कटान या सूर्य के उत्तरायण पक्ष की ओर जाने से जुड़ी हैं।


लोहड़ी का सम्बन्ध फ़सल कटाई से भी जोड़ा गया है। गन्ने की कटाई का समय लोहड़ी या उसके आस पास ही होता है याने जनवरी - मार्च। सामान्यतः गन्ने की बुवाई भी जनवरी - मार्च में की जाती है। इन दिनों गाजर, मूली, मेथी, पालक की फ़सल भी कट कर बाज़ार में आने लगती हैं। इस सीज़न में गुड़, मूँगफली, गज्जक और रेवड़ी का भी आनन्द लिया जा सकता है।

लोहड़ी से अगले दिन याने माघ महीने से किसानों का नया साल या नया वित्तीय वर्ष भी चालू होता है। खेतों का लगान और बटाई के सौदे भी इसी दिन किये जाते हैं। लोहड़ी मनाने में इस कारण का भी योगदान है। 

मकर संक्रान्ति याने १४ जनवरी से सूर्य देवता भी उत्तरायण की ओर प्रस्थान कर जाते हैं और लोहड़ी की आंच में मौसम बदलने का संदेश दे जाते हैं। ठिठुरती सर्दी से छुटकारा पाने का कारण भी इस में जोड़ा गया है। 

लोहड़ी मनाएँ और गाना बजाना न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। और लोहड़ी के समय गाए जाने वाले लोकगीतों में दुल्ला भट्टी का ज़िक्र आता है क्यूँकि दुल्ला भट्टी इस मौक़े का ख़ास किरदार या हीरो है। वैसे तो उसका काम राबिनहुड जैसा था। सरकारी ख़ज़ाने लूटना, ग़रीबों की मदद करना और उनकी लड़कियों की शादियाँ करवाना। जैसा की नीचे लिखे गीत में कहा गया है, दुल्ला भट्टी ने सुन्दरी और मुंदरी नामक लड़कियों की शादी कराई और एक सेर शक्कर का दहेज दिया। 

सुन्दर मुंदरिये - होय !
तेरा कौन विचारा - होय !
दुल्ला भट्टी वाला - होय !
दुल्ले धी व्याई - होय !
सेर शक्कर पाई - होय !
कुड़ी दा लाल पटाका - होय !
कुड़ी दा सल्लू पाटा - होय !
सल्लू कौन समेटे - होय ! 
चाचे चूरी कुट्टी - होय !
ओ जिमीदारां लुट्टी - होय !
जिमीदार सुधाए - होय ! 
गिन गिन भोले आए - होय !
इक भोला रै गया - होय !
सिपाई फड़ के लै गया - होय ! 
सिपाई ने मारी इट्ट - होय !
भांवे रो ते भांवे पिट्ट - होय !
सानू दे दे लोड़ी, ते जीवे तेरी जोड़ी ।

दुल्ला भट्टी ( दुल्ला भाटी ) का पूरा नाम राय अब्दुल्ला खान भट्टी राजपूत था जिसने मुग़ल बादशाह अकबर के विरुद्ध विद्रोह का झंडा बुलंद किया। माता का नाम लद्धी, पिता का नाम राय फ़रीद खान भट्टी और दादा का नाम राय संदल खान भट्टी था। भट्टी मुस्लिम राजपूत संदलबार / संदलवाल इलाक़े के रहने वाले थे जिसे आजकल पिंडी भट्टीयां (पाकिस्तान) भी कहा जाता है। इन भाटी राजपूतों का सम्बन्ध जैसलमेर के राजपूत वंश से रहा है। जैसलमेर के राजा रावल गज सिंह भट्टी ( 1820 - 1846 ) को अंग्रेज़ों द्वारा काफ़ी ज़मीन झंग और चिनीयोट ( पाकिस्तान ) में दी गई थी और ये राजपूत वहीं जा बसे। यहाँ के भाटी राजपूत गाँवों के कुछ नाम हैं - पिंडी भट्टियान, जलालपुर भट्टियान, भाका भट्टियान, भट्टियान छिब्बन और भट्टियान गूजर खान। 

अपने दादा परदादा की तरह दुल्ला भट्टी भी अपने इलाक़े का लगान और टैक्स अकबर के दरबार में नहीं पहुँचाता था।  इस के अलावा भट्टी राजपूत अकबरी ख़ज़ाने वग़ैरह पर भी छापेमारी करते थे। इस इलाक़े से मुग़ल लड़कियों को अगवा करते थे और बाहर देशों में बेच आते थे। अकसर दुल्ला भट्टी छापेमारी कर के इन्हें छुड़वा लेता और वहीं शादियाँ भी करवा देता। इसके अलावा शादी में दान दहेज भी दे दिया करता। इन कारणों से नाराज़ अकबर की फ़ौज ने कई नाकाम कोशिशों के बाद दुल्ला भट्टी को पकड़ लिया और सरे आम लाहौर में फाँसी लगा दी। तभी से दुल्ला भट्टी को हर लोहड़ी में याद किया जाता है। 

दुल्ला भट्टी के बहादुरी के क़िस्सों पर अनेक गीत " दुल्ले दी वार " और कहानियाँ लिखी गई हैं जो यूट्यूब और फ़ेसबुक पर भी उपलब्ध हैं। 




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