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Saturday 9 May 2015

1857 और मेरठ

दस मई 1857, रविवार मेरठ के फिरंगियों का विश्राम का दिन था। इनमें ज़्यादातर अंग्रेज़ कुछ पुर्तगाली कुछ डच और कुछ अन्य यूरोपियन थे। कुछ सदर में शॉपिंग कर रहे थे, कुछ चर्च में थे और कुछ घरों में। अचानक शोर शराबे के साथ काली पलटन के कुछ सिपाहियों और शहर निवासियों ने हमला बोल दिया। फिरंगियों के सँभलने से पहले उनमें बहुत से मार दिए गए और कुछ भाग गए। पूरे शहर और आसपास के गाँवों में विद्रोह फैल गया। शाम होते होते नारा बुलंद हो गया ' चलो दिल्ली'।

उन दिनों मेरठ छावनी में 2000 से ज्यादा अंग्रेज़ सिपाही और अफ़सरान थे जबकी लगभग 3000 लोकल यानी 'काली पलटन' के सिपाही थे। ये लोग तीसरी बंगाल लाइट कैविलरी में शामिल थे। कुछ महीनों पहले अंग्रेज़ों ने एनफील्ड नाम की एक नई राइफ़ल सिपाहियों में बाँटी थी जिसके कारतूस पर गाय और सूवर की चरबी लगी होती थी। राइफ़ल में कारतूस लोड करने के लिए मुँह से कारतूस का कवर हटाना पड़ता था। इसको ले कर पूरे देश की 'काली पलटन' में बड़ा रोष था। इस तथ्य को अनदेखा करते हुए हुए लेफ़्ट कर्नल कारमाइकेल स्मिथ ने 24 अप्रैल के दिन 90 सिपाहियों की टुकड़ी को इन्हीं कारतूसों का फ़ायरिंग अभ्यास करने का आदेश दिया। 

85 ने आदेश मानने से इंकार कर दिया और उनका कोर्ट मार्शल कर दिया गया। बग़ावत के आरोप में सरसरी तौर पर मुक़दमा चला और 74 को दस दस साल की क़ैद और 11 को जो कम उम्र के थे पाँच पाँच साल की बामशक्कत क़ैद की सज़ा दी गई। 

जेल भेजने से पहले सरे आम वर्दियाँ उतार ली गईं जबकी बाकी सेना देखती रही। नंगे बदन और हथकड़ियाँ पहना कर जुलूस की शक्ल में जेल ले जाया गया। रास्ते में क़ैदियों पर जनता की गालियों की बौछार पड़ी। अगले दिन याने दस मई रवीवार के दिन पूरे शहर में अशांति बढ़ गई और ग़ुस्सा फूट पड़ा। कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने इन पच्चासी सिपाहियों को छोड़ दिया। बाकी क़ैदियों को जनता ने छुड़ा लिया और शोर शराबे के साथ अंग्रेज़ों पर हल्ला बोल दिया। बग़ावत का बिगुल बज गया। 

स्वतंत्रता संग्राम 1857 का स्मारक जो 1972 में बनाया गया। इस मीनार के पीछे एक कुँआ था जो प्याऊ का काम करता था। इससे कुछ क़दम दूर औघड़नाथ मंदिर या काली पलटन का मंदिर है। यही विद्रोह का अड्डा या उदगम स्थल बना

काली पलटन मंदिर (औघड़ नाथ मंदिर) का स्मारक मेरठ कैन्ट

मेरठ संग्रहालय में लगी एक पेंटिंग। फ़क़ीर जो चरबी लगे कारतूसों के ख़िलाफ़ सिपाहियों को समझा कर विद्रोह के लिए तैयार करते थे

स्वतंत्रता संग्राम का सुंदर चित्रण माल रोड-रुड़की रोड चौराहे पर, मेरठ कैंट

माल रोड पर ही एक और स्मारक। निचले लाल पत्थर पर उन पच्चासी लोगों के नाम हैं जिन्होंने संग्राम का श्रीगणेश किया

इन नामों से भी अनेकता में एकता झलकती है

मेरठ संग्रहालय में लगी एक पेंटिंग। क़ैदी जेल से भागने की तैयारी में

सदर थाने के पास एक स्मारक जहाँ से संग्राम शुरू हुआ

दस मई 2015 का औघड़ नाथ मंदिर परिसर


मेरठ से सम्बंधित निम्नलिखित दो लेख और भी हैं चाहें तो नजर डाल सकते हैं:

1. Meerut a short write-up

  ( http://jogharshwardhan.blogspot.com/2014/04/meerut-synopsys.html )  

2. मेरठ का एक गाँव गगोल, 1857 और दशहरा

 ( http://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/04/1857_25.html )





1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/05/1857.html