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Saturday 2 April 2016

रुपया आया रुपया गया

प्रमोशन होने के बाद पहली पोस्टिंग मिली नजफ़ गढ़ ब्रांच में. वहां जाकर इच्छा हुई कि नजफ़ गढ़ का गढ़ कहाँ है देखा जाए और इसका इतिहास क्या है पता लगाया जाय. पर ज्यादातर जानकारी ब्रांच के एक चपड़ासी नफे सिंह ने ही दे दी.

दिल्ली के आखिरी मुग़ल सुलतान ने दो भाइयों को उनकी सेवा से खुश होकर लाल किले से करीबन 30 किमी दूर कुछ गाँव दे दिए. एक भाई का नाम नजफ़ खान था और दूसरे का बहादर खान. दोनों ने वहां किले बनवाए -  नजफ़ गढ़ और बहादर गढ़. दोनों किलों की आपसी दूरी लगभग १० किमी होगी. फिलहाल तो नजफ़ गढ़ दिल्ली में है और बहादर गढ़ हरयाणे में. किलों पे तो जनता जनार्दन का कब्जा हो चुका है. कहीं कहीं आधी अधूरी दिवार या टूटी हुई बुर्ज नज़र आती है. गढ़ तो अब बिना लड़ाई के ध्वस्त हो गया है बस नाम ही रह गया है.

उन्हीं दिनों शायद इस इलाके में धर्म परिवर्तन भी हुआ होगा. कुछ स्थानीय लोग मुसलमान बने होंगे. सन 1947 की उथल पुथल में कुछ लोग चले गए कुछ अब भी हैं यहां. स्थानीय भाषा में इन्हें मूले या मूळे जाट कहते हैं क्यूंकि इनके नाम के साथ सिंह अभी भी लगाया जाता है मसलन - सुल्तान सिंह, दरयाव सिंह, नफे सिंह, ज़िले सिंह वगैरा. इन मूळे जाटों के घर में मक्का मदीना की फोटो मिलेगी और शंकर भगवान की भी.

समय का बदलाव आया और अब दिल्ली बेतहाशा और बेलगाम फैलती जा रही है. दिल्ली के आस पास की खेती के जमीनें सन १९८० के बाद तेजी से बिकने लगी थी. इनमें नफे सिंह की भी ज़मीन थी. दिन ब दिन रेट बढ़ते जा रहे थे. नफे सिंह तो बेचने का इच्छुक नहीं था क्यूंकि उसके विचार में 'पुरखां की धरती ना बेकी जाए साब यो तो माँ सामान पेट भरे है जी म्हारा'. पर नफे सिंह की आवाज़ सिक्कों की खनक में कोई नहीं सुन रहा था. उसके अपने बेटे भी नहीं.

नफे सिंह को अक्सर अपनी गाड़ी में साथ लेकर आस पास के गाँव में किसानों से मिलने चला जाता था. उसे खबर रहती थी कि किस गाँव में जमीन का सौदा होने वाला है. हमें ये उम्मीद रहती थी कि सौदे के पैसे हमारी ब्रांच में जमा होंगे. इन कार यात्राओं के दौरान नफे सिंह के परिवार की भी जानकारी मिल जाती थी. वो कार में बैठा बैठा बिना पूछे अपने आप ही बतियाता रहता था.

- म्हारे तो जी तीन छोरे हैं पर सुसरे कतई ना पढ़े. ना खेती में ध्यान दें जी. बड्डा पांचवी पास, बीच वाला आठ पास और भगवान भला करे जी छोटा पांच, बस पांच. इब तीनों पाच्छे पड़े जी की तीन किल्ले जमीन बेक दो. रोज किसी पार्टी ने ले आंवे जी घरां. यो 11 लाख देवगा यो 12 देवगा.

एक दिन सौदा हो ही गया और 12 लाख बैंक में जमा हो गए. तीन तीन लाख तीनों बेटों के नाम करके बाकी नफे सिंह ने अपने नाम करा लिए. बड़े बेटे ने तो एक छोटा ट्रक ले लिया और माल ढुलाई शुरू कर दी. उसे रास्ते भी पता लग गए और शराब के ठेके भी. एक रात नशे में छोटे ट्रक ने किसी बड़े ट्रक को टक्कर मार दी. छोटे ट्रक और बड़े बेटे दोनों की कथा वहीं समाप्त हो गई.

बीच वाले बेटे ने नया ट्रेक्टर ले लिया ये सोच के कि अब अपने खेतों का काम तो फ्री होगा और किराये पे भी चला देंगे तो कुछ पैसे कमा लेंगे. पर एक शाम को ट्रेक्टर बैक करते करते ट्रेक्टर का पिछला पहिया गढ्ढे में डाल दिया और बेटे समेत ट्रेक्टर उलट गया. जब तक लोग आते बेटे की साँस बंद हो गई.

कुछ दिन बाद नफे सिंह से तीसरे बेटे का हाल पूछा तो बिचारा ठंडी साँस भरकर बोला,
- उसकी तो सादी कर दी साब. बस जी दोस्ती यारी पर रुपया लुटा रया जी. आए दिन म्हारे से रुपया मांगे है जी. क्या करें जी. धरती बेक दी मनीजर साब 12 लाख में पर म्हारे तो पताई नई लाग्या कि रुपया आया कहाँ ते अर रुपया ग्या कहाँ को?

कहाँ से आये और कहाँ को जाओगे 


7 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/04/blog-post.html

Manish said...

Nafa means profit lekin yahàn to nuksan ho gaya....

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Nice. Ye kahawat hi hai Maya maha dagni. Maya kissi ke pass bhi nahi rehti. Pàise ke Anne se pehle hi kharcha aa jata hai.

Subhash Mittal said...

Excellent presentation

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Manish

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Gandhi ji. Sab Maya ka khel hai!

Anonymous said...

Money move without wheel, Sir ji.