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Tuesday 3 May 2016

यहां और वहां

पिछले दिनों एक यूरोपियन महिला का हमारे घर आना हुआ. उन्होंने सुबह 11 बजे होटल का भुगतान कर दिया था और सामान समेट कर होटल मैनेजर के पास जमा कर दिया था. पर वापसी फ्लाइट के लिए एयरपोर्ट रात 11 बजे पहुंचना था. अब लगातार होटल लॉबी में अकेले बैठना भी मुश्किल काम था और टीवी देखना नहीं चाहती थी. तो हमारे निमंत्रण को उन्होंने स्वीकार कर लिया उन्हें लगा की चलो हिन्दुस्तानी घर भी देख लिया जाए और घरेलू खाना भी चख लिया जाए.

खाने की तैयारी बिना मिर्च मसाले के हो गई. खाने में और तो सब ठीक था बस उनका रोटी खाने का ढंग ज़रा अलग लगा. रोटी का एक टुकड़ा तोड़ कर मुंह में डाला और फिर एक चम्मच दाल मुंह में डाल ली. सामान्य तौर पर लगभग सभी फिरंगियों के साथ ऐसा ही है. खैर लंच समाप्त हुआ तो गपशप चालू हो गई. अपनी उम्र उन्होंने 32 बताई और बताया कि अभी शादी नहीं हुई थी. परिवार के बारे में पूछने पर बताया,
- मेरी माँ तलाक शुदा है और हम दोनों याने मेरे भाई को भी माँ ने ही पाला है. हम उस वक्त छोटे ही थे. उसके बाद पिताजी को कभी देखा नहीं. माँ फूलों की एक दूकान चलाती हैं. मेरा भाई अब एक कम्पनी में सेल्स मैनेजर है. पिछले पांच साल से मेरा एक बॉय फ्रेंड भी है शायद अगले साल दोनों शादी पर विचार करेंगे.

परिवार की एक साधारण, सरल और सीमित परिभाषा सुन कर थोड़ा सा अच्छा लगा थोड़ा सा विस्मय हुआ क्यूंकि उसमें बॉय फ्रेंड भी शामिल था. शाम को उन्हें वापिस होटल छोड़ दिया गया और अगले दिन लन्दन पहुँचने की सूचना भी आ गयी.

और यहाँ अगले दिन सुबह सुरेश ने घंटी बजा दी. सुरेश भी शायद 30-32 साल का है. दिन में कहीं और काम करता है और सुबह गाड़ी साफ़ करने आता है. इस बार वो दस दिन बाद आया था. दस दिन की छुट्टी जाने से पहले बता कर भी नहीं गया था.
- साब मैं आ नहीं पाया.
- भई आप बता के भी नहीं गए तो इसलिए हमने दूसरे  को बोल दिया था. आज देख लो वो तो गाड़ी कर भी गया है.
- साब उस से में बात कर लूँगा. अभी तो मुझे थोड़ा एडवांस चाहिए साब. 72 और 111 नंबर वालों से भी लेकर आ रहा हूँ साब.
- कैसा एडवांस सुरेश. तुम तो जानते हो हम तो अब रिटायर हो चुके हैं. अब तो पेंशन के इंतज़ार में रहते हैं. पर तुम्हें एडवांस क्यूँ चाहिए?
- साब बीवी हॉस्पिटल में है डिलीवरी हुई है चार दिन पहले इसीलिए तो आ नहीं पाया था.
- ओहो मुबारक हो. पहला बच्चा है ये ?
- साब ये तीसरा है जी. दो लड़कों के बाद लड़की हुई है जी.

एडवांस तो खैर दे दिया सुरेश की शकल देख कर वसूली चाहे होगी या नहीं पता नहीं. पर तब से हमारा इस बात पर आपस में विचार विमर्श हो रहा है की सुरेश और फिरंगी मैडम के विचारों में कितना अंतर है. एक तरफ ये देसी माता-पिता हैं जिनकी कोई रेगुलर आमदन नहीं है ठौर ठिकाना नहीं है. ग़रीबी चेहरे पर साफ़ झलक रही है फिर भी 30-32 साल की उम्र में तीन बच्चे हो गए. बच्चों की शिक्षा कैसे होगी और होगी भी या नहीं, आगे वो क्या नौकरियां करेंगे कुछ पता नहीं. दूसरी ओर है फिरंगी मैडम जिनकी फैमिली में सभी कमा रहे हैं. अभी मैडम और उनका बॉय फ्रेंड 30-32 के हैं और शादी की अभी कोई जल्दी नहीं है.

यहाँ और वहां के विचारों की तुलना करना ठीक भी है या नहीं पता नहीं. पर इस विषय पर बात करते करते पूर्व राष्ट्रपति कलाम साब की कुछ लाइनें दोहरा दें जो बड़े काम की हैं:

If a country is to be corruption free and become a nation of beautiful minds, I strongly feel there are three key societal members who can make a difference. They are the father, the mother and the teacher.

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1 comment:

Anonymous said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/05/blog-post.html