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Wednesday 31 August 2016

Hampi, Karnataka - a World Heritage Site : Part 1 of 3

Hampi is situated on the south bank of the river Tungbhadra approx 350 Km from Bangalore. Nearest railway station is 15 km away in Hospet in Bellary district of Karnataka. The river was earlier known as Pampa which became Hampe in Kannada & got anglicised to Hampi.

This village Hampi is situated in erstwhile capital city of Vijaynagar Empire which covered vast tracts of southern India. The Empire was established by two brothers Harihara ( or commonly known as Hakka ) & Bukka Raya in 1363 under guidance of their guru Madhava Vidyarnya. The mighty Empire in its peak time extended from river Krishna to Kanyakumari and from Goa to Odisha.

In ancient times the area was known as Pampa-kshetra, Kishikindha-kshetra or Bhaskara-kshetra. Later it has also been mentioned as Virupakshpura as Virupaksha was the patron deity of Vijaynagara Kings. 

The Empire suffered a major defeat in the year 1565 at the hands of confederation of Deccan sultanates. Thereafter the Empire weakened considerably & collapsed by 1646.   

Hampi is one of the UNESCO World Heritage sites in India. It is a charismatic capital town even in ruins. Large boulders strewn across the landscape, in valleys & on surrounding hills make the backdrop of Hampi unique. Spread around are hundreds of small & large monuments. These include magnificent temples, palaces, pavilions, ancient markets, army quarters, aqua-ducts & water tanks. The list is of monuments in Hampi is endless. This may be called an open museum of a large prosperous capital city which saw glorious days for two centuries from 1363 AD to 1565 AD. 

Trade with foreign countries had increased considerably at the time via Calicut port. Many traders & visitors have recorded about the wealth, culture, architecture, food & life style prevalent at the time in Vijaynagara Empire. Some of them are Abdul Rezzak from Herat who visited in 1443, Nicolo Conti of Italy who visited during 1420, Portuguese traveller Domingo Paes who stayed in the Empire during 1520-22, Portuguese horse trader Fernao Nuniz who was here in 1536-37, Cesare Frederici of Italy who visited in 1567 and Colonel Colin Mackenzie of Scotland who visited in 1799.  

If you love history & have strong legs as they say locally, you can spend weeks in Hampi. The ruined Capital is spread over hilly terrain of 26 sq. km. Bicycles, motorbikes, tonga, golf carts etc are also available in the town on rental basis for excursions. Every turn of the way & every hill holds a surprise for you. 
Some photos:


Monolith statue of Lakshmi Narsimha 6.7m in height built in 1528. This is fourth incarnation of Lord Vishnu sitting on the coils of Adishesha Nag with its seven faced hood as canopy. Seated figure of Lakshmi on left lap has since been lost

Huge 3 m high monolith linga - Badavailinga

Carved pillars of Prassana Virupaksha Temple. Such pillars are found in all buildings of Hampi.

Entrance of Prassana Virupaksha (underground Siva) Temple

Side view of the Siva temple

Small & large statues kept in open in office complex of Archaeological Survey of India, Hampi

Massive stone doors to the Royal Enclosure lie damaged. These were moved with the help of elephants.

Mahanavami Dibba on the top of which sat King & his family 
8m high, 35 sq m at the top, Mahanavami Dibba is part of Royal Enclosure. Upon the Dibba sat the kings & royal families & watched the proceedings on festivals like Ramanavami

One of the many water storage tanks

Network of water supply channels ensured perennial supply

These stone plates were used to serve food to the wrestlers during festival shows 
Step well in Royal Enclosure used by royal family


Layout with wide pathways & open spaces for the elite

Up to ceiling level the temples were of stone & above that mortar & bricks were used 
Wide pathways & temples everywhere

View from the another platform in Royal Enclosure

Kuduregombe Mandapa

Pushkarni. A small temple in the water tank

Battery operated vehicles are available at some spots

Talarighatta Gate in rear view mirror
      


  

Tuesday 30 August 2016

ट्रेनिंग

सरकारी नौकरी का अपना ही मज़ा है. एक ही दफ़्तर में एक ही कुर्सी टेबल पर १० बजे से ५ बजे तक फ़ाइलें उलट पलट करते रहिये. बीच बीच में टी ब्रेक, लंच ब्रेक, गप्प ब्रेक, तफरी ब्रेक और बॉस-सेवा ब्रेक करते रहिये. बॉस की तबीयत बहली रहेगी तो उसी ऑफिस में कुर्सी बनी रहेगी. वैसे भी तबादला कौन चाहता है ?

तबादला तो दूर की बात है प्रमोशन भी नहीं चाहिए. वरना एक तरफ जिम्मेवारी बढ़ेगी और दूसरी तरफ बाहर पोस्टिंग पर जाना पडेगा. और प्रमोशन की किसे परवाह है - अपना मकान है, सुविधाजनक दूरी पर दफ़्तर है, बीबी कमाऊ है और दोनों बेटियों का ख़्याल रखने के लिये घर में दादा दादी हैं.

बस इसी तरह की बाबूगिरी में कुन्दरा जी की ज़िन्दगी आराम से गुज़र रही थी. १५ साल हो चले थे एक ही डिपार्टमेंट में. सुबह बड़े ही सलीक़े से तैय्यार होकर अपने दुपहिया से दफ़्तर आते. हैलमेट को स्कूटर में लॉक करते और जेब से कंघी निकाल कर बालों को क़रीने से माथे पर सजा देते. फिर अपने तीन डिब्बे वाला टिफ़िन लेकर दाएं बाएं देखते हुए अपने डिपार्टमेंट की ओर चल देते. कुन्दरा जी थे तो ४५ साल के पर अपने आप को २५ साला नौजवान समझते थे. नज़रें बहुत पैनी थी डिपार्टमेंट के दरवाज़े से ही हाल का पूरा मुआयना कर लेते थे. 

अंदर पहुँच कर टिफ़िन के दो डिब्बे हाट-केस में रखते और दही वाला डिब्बा ए.सी. के सामने सजा देते. टेबल व कुर्सी पर हल्का सा कपड़ा फेरते और रोज चपरासी शंकर को ठीक से काम करने की नसीहत जरूर देते. दाहिनी तरफ़ रखी कैबिनेट से १०-१२ फ़ाइलें निकाल कर टेबल की बांई ओर सजा देते. सुन्दर सा पैन स्टेंड, पेपर वेट और पानी का गिलास टेबल पर क़रीने से सज जाता तो कहते,
- चलो जी आज की हाजरी तो लग गई !

दाएं बाएँ हाल मे नज़रें घुमाकर मुआयना करते. कौन आया कौन नहीं. किसने कैसी साड़ी पहनी है और किसकी शर्ट नई है. दिन की शुरुआत महिलाओं से बात करके हो तो दिन अच्छा गुज़रता है. सो श्रीमति मलिक को नमस्ते करके बोले ,
- होर जी मलिक साब दा की हाल है ?
श्रीमती मलिक कुर्सी पर पैर समेटे बैठी हुई थी और मैडम दुआ के साथ पराँठे अचार का आनंद ले रही थी. तपाक से बोली,
- मलिक साब नू की होणा है ? ना मलिक साब कोई कम करदे नें ना कुड़ियां कुछ कर दीयां ने.
कुन्दरा जी ने तुरंत श्रीमती मलिक को सलाह दी,
- कुड़ियां कोलो कम कराया करो. लड़कियों ने दूसरे घर नहीं जाना है ?
- ओ जी अस्सां ते टोर देणियां ने आप्पे निबेड़न गे ससुराल वाले ( हमने तो विदा कर देनी हैं ससुराल वाले अपने आप निपटते रहेंगे )! कह कर श्रीमती मलिक कुछ मुस्कुरा दी.
कुन्दरा जी ने फिर श्रीमती दुआ की तरफ रूख किया और हाल चाल पूछा,
- दुआ मैडम जी कोई लड़का मिला ? कुड़ी वास्ते किधरे गल बनी ?
- हंजी ईक मुन्डा वैख्या ते है गल बात चलदी पई है. कुड़ी त्यार हो गई है.
- अच्छा है जी आजकल कुड़ियां जल्दी नहीं तैयार होती. बस जल्दी मुहं मिठ्ठा कराओ जी.

कैंटीन वाला १२ बजे की चाय कुन्दरा जी की टेबल पर रख गया. कुन्दरा जी चाय और समोसे का आनन्द ले ही रहे थे कि चपरासी शंकर के साथ एक २३ -२४ साल की महिला को अपनी ओर आते देखा. फटाफट कंघी निकाली और बाल सैट किए. क़मीज़ के कालर की नोक ठीक की फिर आस्तीनों की क्रीज़ बिठाई. इस दौरान नज़रें महिला पर टिकी रहीं. शंकर ने महिला का परिचय  कराया,
- ये मिस मालती है. ये ट्रेनिंग लेने आई हैं. साहब ने आपके पास ट्रेनिंग के लिए भेजा है.

कुन्दरा जी ने मिस मालती को ऊपर से नीचे देखा तो मिस मालती सावंले रंग की छरहरे बदन की आकर्षक महिला लगी. बड़े अच्छे तरीके से टेबल की दूसरी ओर अपने सामने बिठा लिया. पानी मँगवाया और मिस मालती का इन्टरव्यू लेने लगे - कहाँ रहती हो, पहले नौकरी कहाँ की है, शादी का क्या स्टेटस है. ख़ास सवाल ये था कि मिस मालती कितने दिन उनके पास ट्रेनिंग लेगी. जवाब मिला कि एक सप्ताह उनके साथ काम सीखेंगी.

कुन्दरा जी का अगला हफ्ता बड़ा व्यस्त गुज़रा पर शानदार गुज़रा. पूरे हफ्ते खुश नज़र आए. पर ट्रेनिंग देते देते कुन्दरा जी का खर्चा बढ़ गया - एक परफ्यूम की शीशी , एक डिब्बा नया पाउडर, एक बोतल हेयर कलर, जूता पोलिश वगैरा लेनी पड़ गई. धोबी का बिल बढ़ गया. हेलमेट और स्कूटर धुलवा के पोलिश करवाया शायद मिस मालती को बिठाने का चांस मिल जाए ! कैंटीन वाले को चुपके से कह दिया कि एक हफ्ते तक मीठी चाय पिलाए कमबख्त शुगर बढ़ती है तो बढ़े. निकम्मे दोस्तों ने भी कई बार चुस्की ली और बदले में चाय समोसे गटक गए.

गाड़ी तैयार है 

कुन्दरा जी मन ही मन सोच रहे थे कि ट्रेनिंग तो अब ख़तम हो जाएगी. कॉफ़ी हाउस चलने को कहता हूँ मानेगी या नहीं ? मान जाएगी ? हाँ ? ना ? अगर कहेगी कि लेट हो जाउंगी तो कहूँगा स्कूटर किस लिए है. फिर हिम्मत कर के कह दिया,
- ट्रेनिंग तो अब ख़तम हो रही है मिस मालती. तो फिर हमारी पार्टी भी तो होनी चाहिए ?
- हाँ हाँ क्यूँ नहीं. अभी कैंटीन में इण्टरकॉम करती हूँ.
- ना जी ना मिस मालती यहाँ की चाय थोड़ी पीनी है. हम तो कनाट प्लेस में कहीं बैठेंगे.
- हाँ हाँ कल चलिए ऑफिस के बाद.

कुन्दरा जी मुस्कराए भई कमाल कर दिया मिस मालती ने. उम्मीद तो नहीं थी ! पुरानी नसों में नया खून दौड़ने लग गया . मन में गुदगुदी होने लगी. अगला दिन कितना लम्बा हो गया ? पांच ही नहीं बज रहे थे कमबख्त. किसी तरह से ऑफिस का समय समाप्त हुआ और कुन्दरा जी ने चैन की साँस ली. हाथ मुंह धोया. बाल सेट किये, पर्स में पैसे चेक किये और मिस मालती के साथ ऑफिस के बाहर आ गए. पार्किंग से स्कूटर निकालने लगे तो मिस मालती ने रुकने का इशारा किया.
- जी क्या हुआ ?
- एक मिनट रुकिए.
सामने से फटफटिया आकर रुकी. सवार ने हेलमेट उतारा तो मिस मालती ने परिचय कराया,
- ये हरेंदर सिंह हैं मेरे मंगेतर और आप हैं कुन्दरा साब.

कुन्दरा जी के मन के गुब्बारे में सुई चुभ गई और सारी हवा निकल गई. मुंह का स्वाद कसैल गया. मन की गुदगुदी खुजली में तब्दील हो गई. भारी मन से बोले,
- मुझे कुछ सामान ले जाना था एक्चुली, आप लोग एन्जॉय करो.
कुन्दरा जी को मन ही मन मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर याद आ गया :

' हैरां हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूं जिगर को मैं,
  मक्दूर हो तो साथ रखूं नौहागर को मैं !'

* मक्दूर - बस में
* नौहागर - मातम मनाने वाला

ये शेर एक ग़ज़ल का मुखड़ा है जो मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखी थी. इस ग़ज़ल को कई कलाकारों ने गाया है जिनमें से एक हैं सी. एच. आत्मा. उनकी आवाज़ में ये ग़ज़ल यूट्यूब पर उपलब्ध है जिसका लिंक है :
https://youtu.be/B-5aQtAzExM?list=PLJeNQvgQ4Sl-8_Sck2cOqnQ0thnaLR3fs

- - - गायत्री वर्धन नई दिल्ली.



Friday 26 August 2016

Chennakesava Temple , Belur, Karnataka - 1 of 2

There are 650 carved elephants on the platform of the temple. Each of these has a different body language & expression 















Chennakesava Temple is situated in a small taluka Belur, in Hassan district of Karnataka. It is 220 km from Bangalore & about 40 km from city of Hassan. Nearest railway station is Chikmagalur which is 22 km away. Its average height is 3200 ft above sea level & breezy weather here is similar to that of Bangalore. Best time to visit is Oct-Mar when humidity level is low. Belur & it's surroundings are rural agricultural area & roads are in need of improvement.


Deepastambha & Rayagopuram. This is said to be an addition during Vijayanagara period
Side view of the temple

Belur or Beluru in Kannada, together with Halebidu which is 16 km away were the early capital of the Hoysala Empire. There is a legend about the name Hoysala. It is said that Sala & his guru Sudatta Muni were performing a ritual in a temple of Vasantha Parameshwari in nearby Sosevur & a tiger attacked them. Sudatta Muni gave a call of ‘Hoye” to Sala who struck the tiger (some say it was a lion) down. Thus began Hoysala dynasty which ruled for 300 years with Sala as first ruler. The scene of fight between Sala & the tiger has been carved out of stone beautifully & it became an emblem of Hoysalas.


The emblem of Hoysalas on the right side of the entrance of Chennakesava Temple. Sala is fighting with tiger 

Of the Hoysala kings two names are very prominent King Vishnuvardhana & his grandson King Veera Ballala II. King Vishnuvardhana was great patron of art & is said to have commissioned 1500 temples of which 100 have survived. He started building the Chennakesava temple in 1117 to commemorate victory over Cholas & his grandson king Veera Ballala II completed the task after 103 years.

The temple is dedicated to Chenna-Kesava that is handsome Kesava or Krishna another avatar of Vishnu. The walls & the pillars of the temple are full of intricate & fine engravings & sculptures. Hardly any space is left blank. Besides elephants, horses & tigers, stories from ancient Hindu scriptures have been carved with great care, intricacy of design & poetic depiction.
 
Soap stone has been used extensively in the temple which is easy to work for creating ornate designs. Jakanachari & his son Dankanchari were main sculptors. Others have also been mentioned in inscriptions or have signed the statues. Some of them are Ruvari Mallitamma (over 40 sculptures), Dasoja and his son Chavana (10 madanikas), Malliyanna and Nagoja (birds and animals) Chikkahampa and Malloja (other than main temple).


Dwarpals at right side entrance of the temple

The temple is built on a large platform or Jagati 300 ft by 300 ft in star shape & provides for a walk-around or pradikshinapatha. The hall or mantapama is open & has three entrances while the top shikhar has been lost to elements. Ornate pillars inside the hall are a unique feature of the temple. Each of them has lots of engravings & intricate carvings which are technically brilliant. Smooth surfaces, geometrically perfect designs are magnificent. Guide informed that these heavy stone pillars were rotated with the help of elephants & while rolling they were hand-chiselled & hand polished. The result is fantastic & they look as if they have been smoothed & shined on mechanical lathes.

Another remarkable feature is delicate & beautiful bracket figures or madanika’s or Shilbalika’s at the top of pillars. They look so fine & fragile that it is difficult to imagine them to be carved out of stone.

The temple complex also has has Kappe Chennigraya temple built by queen Shantala Devi, Somyanayki(Lakshmi) temple, Ranganayaki temple & Pushkarni.



Pushkarni

Ornate entrance 'Toran' to the mantapam or the main hall

A portion of lower wall. This series of elephants representing strength, tigers representing courage & horses representing swiftness wraps around the platform of the temple.

Ranganayki Temple

Kappe Chennaswami & Lakshmi Narayana temples inside the precincts. The pillar has four sides. Three corners touch the stone platform & fourth corner has slight gap through which a newspaper can pass


Near the steps are two bhumijas - small shrines

Stone lattice & bracket figures Shilabalika


Shilabalika - a dancer 

The ceiling

Friends indeed




Understanding the intricacies 
                                                                         


Thursday 25 August 2016

फूल खिले हैं

रंग बिरंगे फूल खिले देखकर मन भी खिल जाता है. चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. फूल है भी तो प्यार मोहब्बत की निशानी. इसलिए कवियों और शायरों की भी पसंद हैं. पूजा अर्चना के लिए भी फूल शुभ हैं. स्वागत के लिए चाहिए फूल माला, शादी के लिए चाहिए फूलों की वर माला और सजावट के लिए चाहिए फूलों का गुलदस्ता. और अंतिम यात्रा की श्रद्धांजली के लिए भी चाहिए फूल और फूलों की माला.

वसंत ऋतु के आते ही फूलों की बहार आ जाती है. रंग बिरंगे और कई तरह की खुशबू वाले. फूलों का राजा किसे कहेंगे? फूलों में फूल गुलाब का फूल जो फूलों का राजा है. पर दुनिया का सबसे बड़ा फूल कौन सा है? ये है रेफलिसिया. इसका व्यास 40-42 इंच तक जा सकता है, उंचाई दो मीटर तक और वजन सात से बारह किलो तक. ये जावा, इंडोनेशिया के जंगलों में पाया जाता है. पर खुशबु नहीं बल्कि बदबू वाला है और इसको 'लाश फूल' भी कहते हैं. और फूलों का उत्पादन सबसे ज्यादा कहाँ होता है? फूल उत्पादन में विश्व में निदरलैंड पहले नम्बर पर है और भारत दसवें नम्बर पर.

फूलों की बात  चले और हिंदी फिल्मों के गीतों का जिकर न हो? कुछ चुनिन्दा फूलों की तरह कुछ चुनिन्दा गीतों के लिंक भी प्रस्तुत हैं:

फूल गेंदवा न मारो न मारो  https://youtu.be/GVgUbrYDJIc

फिर छिड़ी रात बात फूलों की  https://youtu.be/meif1oIfJ5o

बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है https://youtu.be/WtU389r6uys

फूल तुम्हें भेजा है ख़त में https://youtu.be/cAdovJ_k-vs

हज़ार बर्क़ गिरें लाख आंधियां उट्ठें, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं - साहिर लुधियानवी 

वो शाख-ए-गुल पर रहें या मय्यत पर, चमन के फूलों को तो आदत है मुस्कराने की - अज्ञात 

Just living is not enough ... one must have sunshine, freedom and a little flower - Hans Christian Anderson

The earth laughs in flowers - Ralph Waldo Emerson 

दुनिया का सबसे बड़ा फूल - चित्र विकिपीडिया से साभार

Monday 22 August 2016

भूत

दिल्ली से अपने गांव जिबलखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल आये कुछ दिन बीत चुके थे. अब तक गांव के भूगोल की भी जानकारी हो गई थी. मसलन मकान के दायीं ओर से नीचे जाने वाली तंग पगडण्डी पानी के स्रोत की तरफ जाती थी. बायीं ओर से खेतों की मुंडेर पर चल कर नीचे नदी की तरफ जा सकते थे. अगर मकान की बालकनी में कुर्सी डाल कर बैठ जाएं तो बाईं तरफ के खेतों में अलग अलग और दूर दूर चार मकान थे. दाहिनी ओर उंचाई पर लगभग सौ मीटर की दूरी से जंगल शुरू हो जाता था.

घर के निचले कमरों मे रसद व ईंधन का गोदाम था. सामने बड़ा सा आहता था जिसमें  किनारे किनारे मुँडेर पर अमरुद और अनार के पेड़ थे. एक कोने पर केले के पेड़ों का झुण्ड था. सामने नीचे की और सीढ़ीनुमा खेत थे जो नदी तक फैले हुए थे. नदी के उस पार वाली पहाड़ी पर घना जंगल शुरू हो जाता था. उस छोटी पहाड़ी के पीछे और ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ थी और उनसे ऊपर नीला आसमान था. लगता था कि इन पहाड़ियों के पीछे दुनिया होगी ही नहीं.

रविवार के दिन नौकरी पर जाने वाले घर पर ही थे. रोज़गार के लिये लोग या तो ऊपर लैन्सडाउन या नीचे दुग्गडा जाते हैं. दोनों जगह पर कुछ सरकारी महकमे हैं. कुछ लोग मारवाड़ी लाला लोगों की नौकरी बजाते हैं. लाले भी पहाड़ों मे रच बस गये है पहाड़ी ग्राहक देखते ही पूछते हैं,
- भुली के चैणू ( बहन क्या चाहिये ) ?

दोपहर में काका बरामदे मे बैठे फ़सलों की निगरानी कर रहे थे. जैसे ही कोई लंगूर या बंदरों की टोली खेत में आती तो भोटी कुत्ते को उनके पीछे दौड़ा देते. भोटी भौंकता तो बंदर भाग जाते. कुछ बन्दर पेड़ पर चढ़कर ऊपर से घुड़की देते रहते. कभी कभी कोई लंगूर या बंदरों का सरदार बहादुरी से पेड़ से उतर कर कुत्ते को चांटा लगा देता. कुत्ता तो कूं कूं करता घर की तरफ़ दौड़ लेता और सरदार का झुंड पर दबदबा बन जाता. कभी पास के पेड़ पर नए पक्षी की आवाज़ सुनाई पड़ती. मतलब ये की समय बड़े मज़े से जा रहा था.

दोपहर को बाडा जी ( ताऊ जी ) के पोते प्रकाश और चुन्नु मिलने आ गये. बुआ जी चरण स्पर्श कहकर शर्माते हुए एक ओर बैठ कर बतियाने लगे, कुछ हिंदी और कुछ पहाड़ी में. ताऊ जी को भूत की बात बता रहे थे. 

- बाडा दो भूत सफ़ेद कपड़ों मे देर रात चीड़ के जंगल में दिखाई दिये. हमर पिछने पोड़ गे अर हम ऐथर ऐथर भूत हमर पैथर पैथर ( हमारे पीछे पड़ गए और हम आगे आगे भूत पीछे पीछे ). भागने पर रास्ता रोकने लगे. दोनों भूत बीड़ी माँग रहे थे और माचिस भी. हमने तो दी नहीं पता नहीं अगर दे देते तो वो पीछा ही नहीं छोड़ते. पर हमर पिछने सरा रास्ता खड़बड़-खड़बड़ होणी रै ( पर हमारे पीछे सारे रास्ते खड़बड़-खड़बड़ होती रही ).

मेरे लिये तो अनोखी व हास्यप्रद बात थी. मुझे मुस्कुराता देख दोनों भांप गये कि मैंने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया. चुनांचे भूत होते है यह दिखाने के लिये देर रात को वहीं बरामदे में इकट्ठा होने का प्रोग्राम बना लिया.

रात्रि भोजन के बाद नौ बजे प्रकाश, चुन्नु और मैं बरामदे की मुँडेर पर बैठ गये. चारों और घना काला अंधेरा और गहरा सन्नाटा छा गया. एक ओर चाँद की हलकी सी रोशनी में गॉव के बीच से गुज़रते रास्ते के पत्थर चमक रहे थे. दूसरी ओर निचले घरों के छत के पटले ( छत पर लगे ढलवाँ पत्थर ) भी चमक रहे थे. पहाड़ों के सिरे और ऊँचे पेड़ चांद की रोशनी मे धुँधले से दिखाई दे रहे थे. हम सब अंधेरे मे आँखें गड़ाए बैठे थे जबकि पूरा गाँव गहरी नींद में जा चुका था. अपनी खुद की आवाज़ भी डरावनी लग रही थी. जंगल से कभी अचानक सूखे पत्तों की सरसराहट होती तो तेंदुए या बाघ का होने का डर जगा देता था. सब चद्दरों को और मजबूती से पकड़ लेते और सिमटने की कोशिश करने लग जाते.  

बैठे-बैठे रात के 11 बज गये. ऊपर स्याह काला आसमान एक फीका सा चाँद और टिमटिमाते तारे. बहुत ही सुन्दर सीनरी थी पर जब नज़रें सामने फैले घुप्प अंधेरे में जंगल की तरफ़ जाती तो कुछ न दिखता. जैसे जैसे रात बढ़ रही थी डर महसूस होने लगा था. पास से हवा का झोंका बहता तो लगता कोई पास से गुज़रा है. केले के पत्ते हवा से हिलते तो चांदनी उस पर उलटे सीधे डिज़ाइन बना देती देख कर अजीब सा लगता. 

सभी अनमने और उतावले से हो रहे थे कि तभी प्रकाश फुसफुसाया,
- वो देखो नदी से मशाल की लपट उठ रही है, दिखी ? वो गई उप्पर. उन्द जाणी उब आणी ( उप्पर जा रही है निच्चे आ रही है ). दिखी क्या ? अरे ध्यान से देखो ना.

पहले तो समझ नहीं आया. पर फिर ध्यान से देखा तो कुछ मशालें लप-लप करती हुई ऊपर नीचे हो रहीं थीं. ऐसा लगा कि पेड़ों के ऊपर ही ऊपर मशालें तेजी से इधर उधर नाच रहीं हैं. जंगल के इस भाग में जहाँ ये लप-लप डांस हो रहा था ठीक उसी के नीचे नदी किनारे मरघट याने शमशान घाट भी तो था.

सारे बदन में सिहरन फ़ैल गई और रोंगटे खड़े हो गए.

छोटी छोटी सी लपलपाती लपटें पेड़ों के ऊपर कूद रहीं थीं. लपटें पहाड़ की चोटी तक पहुँच रहीं थी और कुछ बीच में ही बुझ रही थीं. कई लपटें ऊपर से नीचे नदी की तरफ आ रही थी और बीच में ही कुछ कुछ लपटें बुझती जाती थी. वाक़ई इतनी तेजी से ऊपर नीचे लपटों का आना जाना समझ नहीं आया. किसी मनुष्य द्वारा तो यह संभव नहीं है फिर ये कैसे हो रहा है ? 

क्या ये सब कोई भूत प्रेत कर रहे थे ? सच में भूत हैं ? ये एक ही स्थान पर ही क्यूँ हो रहा था ? या कोई वहम था ? या मीथेन जैसी कोई गैस जल रही थी ? या मरघट में जले हुए कंकालों से फोस्फोरस की अधिकता हो जाती हो जिसके कारण फोस्फीन गैस बनकर लपटें निकल रही हों ? मन में अनेक प्रश्न चिन्ह लग गये. जाहिर है कि बाकी रात जाग कर कटी.

गाँव की शाम 
इस बात को अब 35-40 बरस हो गए हैं. गाँव में कई बार जाना हुआ पर रात को ठहरने का मौका नहीं मिला. इसलिए दोबारा वैसा दृश्य नहीं देखा.  
--- गायत्री वर्धन, नई दिल्ली.

Friday 19 August 2016

ना मिली

कनाट प्लेस ऑफिस में हरेंदर की नौकरी लगे एक महीना हो गया था. अब उसे ऑफिस की चाल समझ आने लगी थी. ऊँची ऊँची बिल्डिंगें और उनमें ऊपर नीची जाती लिफ्ट भी ठीक लगने लगी थी. पहले पहल तो लिफ्ट में घुसने से कतराता था ख़ास तौर पर अकेला जाने पड़े तो हरेंदर सोचता था,
- ये सुसरी कब अटक जावगी कोई बेरा ना. नूं ही उप्पर निच्चे हांडे जा. कोई चलान वाला भी ना सै.
चौथे माले के ऑफिस में सीढ़ियाँ कूदता हुआ चढ़ जाता था. कोई पूछे तो कहता,
- जी म्हारे धोरे गाँव में लिप्ट ना है जी.
अब तो खैर बाबूगिरी करके उसे समझ आया की लिफ्ट से ऊपर जाने को ही अच्छा माना जाता है. फिर भी उसे अभी कई बातें अजीब सी लगती थीं.
- सुसरे डिब्बे में दो दो रोटी लावें. म्हारे को तो कम से कम चार रोटी, हरी मिर्च अर प्याज जरूरी सै भाई.
शुरू में लंच में हरेंदर ने सोचा की कहाँ बैठ के खाऊं ? एक तरफ तो रोहित नरूला का ग्रुप था और दूसरी तरफ था शशि बाला का ग्रुप. हरेंदर को शशि पसंद थी इसलिए डिब्बा लेकर वहां पहुँच गया.
- ससी जी हम भी रोटी यहीं खाएंगे जी.
दोनों ग्रुपों में खलबली और खिलखिलाहट फ़ैल गई. नया जोकर आ गया. शशि बोली,
- क्यों नहीं हरेंदर जी. पर आपकी ये वाली रोटी तो हम नहीं चबा सकते. देखने में ही मोटी और सख्त लग रही हैं.
- ससी जी अरे तम खाओ ना. कल से हम थारे लिए नीम का दातन भी ले आएँगे कोई दिक्कत ना ए. दाँत घणे .....
ग्रुप ने ठहाकेदार हंसी में जवाब दिया. उस दिन से लड़कियों ने हरेंदर का नामकरण कर दिया - हरिया. कई बार इस ग्रुप को हरिया ने घर से गुड़ लाकर खिलाया. ससी को तो गुड़ के अलावा घर का घी भी अलग से भेंट किया. हरिया की बात पर ससी हंसे तो थी पर फंसे ना थी.

एक दिन शशि की कोई सहेली मिलने आ गई. हरिया की नज़र उस सहेली पे पड़ी तो बस उसी पे टिक गयी. शशि ने इधर उधर नज़र मारी की कोई कुर्सी मिले तो सहेली को बिठा दूँ पर मिली नहीं. हरिया ने तुरंत अपनी कुर्सी लाकर दी,
- ये लो जी कुर्सी. आप ससी के मेहमान तो म्हारे भी तो मेहमान हो जी.
हरिया दस मिनट बाद आया और पुछा,
- ससी जी आपके सुंदर मेहमान चले गए क्या ?
- चली गई. इसी बिल्डिंग में ही काम करती है दसवें माले पे. बड़ी सुंदर लगी आपको ?
- हें हें हें आपसे सुंदर ना है जी. आई डाई ऑन यू ससी जी.
- पागल !

पर हरिया का गुड़ और देसी घी नहीं चला. ससी जी की सगाई जयपुर में हो गई और वो ट्रान्सफर लेकर चली गई. इब हरिया लिफ्ट लेकर दसवें माले का चक्कर लगाने लगा. सुन्दरी को गुड़ भी पेश कर दिया और देसी घी भी. ये भी कह दिया कि ,
- हरेंदर डाईज़ ओन यू लेडी !
सुन्दरी फिर भी ना मानी और देसी घी हजम कर के चल दी. हरेंदर दुखी हो के अपने आप से बोल्या,
- भाई हरेंदर कोई सी ना मिली. यो सहर की छोरियां ना समझ में आई कसम से. इब तो गाँव की ही ढूँढनी पड़ेगी. नौकरी करे या ना करे सुसरी घर की भैंस तो संभाल लेगी.

घर की भैंस 


Tuesday 16 August 2016

न्योता

दोपहर टीवी चलाया तो समाचार मे गुजरात पर दलितों पर हुए अत्याचार पर बहस चल रही थी. देखते देखते मन 70 के दशक मे चला गया. अपने गाँव जिबलखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल में चाचाजी के घर की पूजा समारोह की याद आ गई.

हमारा गाँव जिबलखाल, तहसील लैंसडाउन से थोड़ी दूरी पर है. दस बारह घरों का छोटा सा गाँव है जो एक पहाड़ी की ढलान पर है. आस-पास सीढ़ीनुमा खेत हैं और नीचे एक पहाड़ी नदी नज़र आती है. लैन्सडाउन कभी ब्रिटिश वायसराय का समर रैसिडेंस था पर अब वहां सेना की बड़ी छावनी है.

चाचाजी ने गाँव के सभी परिवारों को कुल-देवता की पूजा और प्रीतिभोज का न्योता दिया था. चाचीजी दूसरे गाँव में रिश्ते-नाते को भी न्योता दे आई थी. छोटे से गाँव के सभी घरों में सुबह से ही चहल पहल शुरू हो गई. बक्सों में से सबने अपने बेहतरीन वस्त्रों को निकाला. सबसे पहले बच्चे रंग बिरंगे कपड़ों में तैयार हो कर बाहर आये उनमें ज्यादा उत्साह था.

फिर महिलाएं निकलीं बढ़िया साड़ियों में. महिलाओं ने तो अपने अपने जेवर भी निकाल लिए थे ख़ास तौर पे नथ. पहाड़ी समाज में जिस महिला की नथ जितनी बड़ी होगी तो मानें कि उसका परिवार उतना ही संपन्न होगा.

अब पूजा समाप्त होगी तो उसके बाद प्रीतिभोज होगा. उसकी तैयारी भी सुबह से चालू हो गई. गाँव में टेंट लगाने या हलवाई बुलाने का कोई चक्कर नहीं होता. बिना कहे बड़े बड़े चूल्हे तैय्यार होने लग गए. बड़े बड़े बर्तन आ गए और शुरू हो गई भोजन पकाने की तैय्यारी. बच्चों ने सूखी लकड़ियाँ जो पहले ही जंगलों से पेड़ काट कर सुखा ली गई थी ,चूल्हे के पास डालनी शुरू कर दी. महिलायें पानी भरने व पत्तल बनाने के काम पर लग गई और पुरूषों ने भोजन व्यवस्था संभाल ली. मसलन गाँव के फकीर भैजी ( भाई जी ) सूजी का हलवा बहुत अच्छा बनाते हैं तो हलवा उनके जिम्मे कर दिया गया. दाल और सब्ज़ी शम्भू और जयनंद भैजी के जिम्मे थी और पूड़ियाँ तलने का काम महिलाओं के जिम्मे रहा.

घर के अन्दर पूजा लगभग समाप्त हो चुकी थी और भोग लगने के बाद मेहमानों को भोजन परोसने की तैय्यारी शुरू हो गई. बच्चों ने दौड़ दौड़ कर दरियां बिछा दी और पत्तलें लगा दी. सब पुरुष पंगत मे बैठने लगे. उसके बाद नम्बर था बच्चों का और फिर महिलाओं ने भोजन किया.

पर इस दौरान देखा कि घर के आंगन के बाहर खेत की मुँडेर से लग कर भजनी काका अपने दोनों छोटे छोटे बेटों के साथ खड़े थे. भजनी काका का घर गाँव के बाहर ऊँची वाली पहाड़ी पर था और उनका पानी भी अलग था. लेकिन खेतों में हल व बुवाई के समय गाँव वाले उनसे काम करवाते थे और दान मे कुछ अनाज या पैसे दे देते थे बस मेरे पास उनका इतना ही उनका परिचय था. मैंने भजनी काका को आँगन में आने का इशारा किया पर उन्होंने अनदेखा कर दिया. मैंने फिर पिताजी को उन्हें बुलाने को कहा.
- वह नहीं आएगा चाहो तो तुम ही बुला लाओ. जाओ कोशिश करो.
भजनी काका के पास जाकर भोजन ग्रहण करने का न्योता दिया पर वो और उनके दोनों बच्चे अपनी जगह से नहीं हिले. भजनी काका बोले ,
- न न यखी ठीक च ( न न यहीं ठीक है ). 

जब सारा गाँव भोजन कर चुका तब भी भजनी काका और दोनों बेटे मुंडेर पर ज़मीन पर पंजों के बल ही बैठे थे. भजनी और उसके बच्चों को वहीं पत्तल पर भोजन दे दिया गया. तीनों ने वहीं पर शांतिपूर्वक भोजन किया. उन्हें घर के लिए भी पत्तल बाँध दी गई. पिताजी से कारण पूछने पर पता चला की भजनी काका निम्न जाति के हैं इसलिए उसे खाना वहीं देना पड़ता है. दिल्ली में ऐसा नहीं देखा था और गाँव में पहली बार जात के भेदभाव को देखा और महसूस किया जो बड़ा विचित्र लगा.

कुछ ने ये सब देखा और समझाया कि बराबरी करने का कोई फायदा नहीं है. तुम तो चार दिन बाद शहर वापस चली जाओगी पर भजनी को तो यहीं इसी व्यवस्था मे रहना है !

मेरा गाँव मेरा देस 

- गायत्री वर्धन, नई दिल्ली.


Sunday 14 August 2016

भजनी

पहाड़ी घुमावदार रास्ता हो और हरे भरे जंगल में से गाड़ी हिचकोले खाती जा रही हो तो बड़ा आनंद आता है. दिल चाहता है की गाड़ी चलती रहे और ऊपर और ऊपर. पर अगर इसी रास्ते से जाकर ऑफिस में हाजिरी लगानी हो तो? फिर तो ना हरियाली दिखती है और ना ही रास्ता पसंद आता है. फिर तो कमर दुखती है, सिर चकराता है और रीजनल मैनेजर के लिए यही दुआ निकलती है - ओ मोटे टकले बॉस तेरी पोस्टिंग भी कभी यहीं हो जाए.

जब यहाँ पोस्टिंग की थी तो बॉस बोला था कि बड़ी अच्छी ब्रांच दे रहा हूँ. सुंदर और ठंडी जगह है और काम भी कम है. दिल्ली की गर्मी से बचोगे. जाओ और ब्रांच का बिज़नेस बढ़ाओ. वहां एक लोकल अफसर है शर्मा, एक लोकल खजांची भी है. उनको दौड़ाते रहो फील्ड में. यंग हो अभी आगे लम्बा कैरियर है कुछ कर के दिखाओ. जो हुकुम मेरे आका कह कर हम तो आ बैठे बड़ी कुर्सी पर.

ब्रांच की लोकेशन सच में सुंदर थी. पहाड़ी की ढलान पर नीचे दो कमरों में ब्रांच और उसके ऊपर के दो कमरों में अपना राजमहल. वो बात और है की महारानी साथ नहीं होंगी. खिड़की से आस पास घने और हरे भरे पहाड़ी जंगल दिखाई देते थे . इस पहाड़ी इलाके में शाम को सूरज धीरे धीरे नहीं ढलता बल्कि अचानक ही गायब हो जाता है और अँधेरा एकदम छा जाता है. बारिश आती है तो बस ठंडी और मूसलाधार पर टीन की छत पर बहुत शोर करती है.

पहाड़ की इस ब्रांच में आ कर लगा कि शर्मा और खजांची की आपस में नहीं बनती और इन दोनों की भजनी से नहीं बनती. इसका कारण जातपात भी हो सकता है यह तो कभी ख़याल में नहीं आया. भजनी हमारी ब्रांच का चपड़ासी, डाकिया, चाय वाला याने हरफनमौला था. चाक चौबंद रहता था और काम टालता नहीं था. शर्मा और खजांची आपस में तो टांग खिचाई करते रहते थे पर शनिवार को मौसेरे भाई बन जाते थे. मतलब ये कि एक शनिवार को शर्मा और हर दूसरे शनिवार को खजांची अपने गाँव को फूट लेता और हाजिरी सोमवार को वापिस आकर लगा देता.

एक शनिवार शाम को शर्माजी ब्रांच में थे. घर की ओर निकलने लगे पर बाहर तेज़ बारिश शुरू हो गयी. रुकने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे और अँधेरा भी घिर आया था. इसलिए भजनी को खाने पीने का इंतज़ाम करने के लिए बोल दिया गया. उसने ऊपर वाला कमरा खोल कर बोतल और गिलास लगा दिए. छाता लेकर गया और बाहर से अंडे और नमकीन ले आया. किचन में अंडे फैंटने की आवाज़ आने लगी तो शर्मा जी तुरंत कर्कश आवाज़ में चीखे,
- भजनी ! तू छोड़ दे मैं बनाऊंगा.
मुझे कुछ आश्चर्य हुआ कि इतनी जोर से बोलने की आवश्यकता तो नहीं थी. पर भजनी तुरंत बर्तन छोड़ कर दरवाज़े के पास फर्श पर चुपचाप बैठ गया. खाने पीने का प्रोग्राम शुरू हो गया तो एक गिलास और प्लेट भजनी को भी दे दिया गया. शर्मा जी ने आदेश दिया की दो अंडे और ले आ. भजनी फिर से छाता लेकर नीचे चला गया. शर्मा जी बोले,
- अरे साब इस भजनी से किचन का काम मत करवाया करो आप.
- क्यूँ? साफ़ सुथरा तो रहता है क्या हुआ?
- अरे साब साफ़ सुथरे की बात नहीं है वो तो डोम है डोम.
- डोम?
- अरे साब ये जो डोम होते हैं उन्हें तो घर के नज़दीक भी नहीं आने देते आप तो उसे किचन के अंदर घुसा रहे हैं. ऐसे नहीं होता. आप तो दिल्ली से आये हो और अगले साल वापिस चले जाओगे. इन लोगों से तो हमें ही डील करना है. हम अपना समाज थोड़े ही खराब कर लेंगे. जैसे पहले चलता रहा है वैसे ही तो चलेगा.

शर्मा जी ने तुरंत गिलास ख़तम किया और वाक आउट कर गए. भजनी को शायद अंडे मिले नहीं या शायद शर्मा के विकराल रूप से भयभीत हो गया, वो तो वापिस ही नहीं आया. रात को भजनी, शर्मा और अपने बर्तन खुद ही धो दिए. 

आये कहाँ से और जाए कहाँ रे 

Friday 12 August 2016

हीरो से ज़ीरो

ऑफिस अगर बड़ा हो तो स्टाफ भी ज्यादा होता है. और स्टाफ ज्यादा हो तो उसमें तरह तरह के प्राणी होते हैं - जवान, अधेड़ और रिटायर होने वाले. कुछ खुशदिल और कुछ खडूस. कुछ पाव-भाजी वाले, कुछ इडली-साम्भर वाले और कुछ छोले- भठूरे वाले. ऐसे ऑफिस में काम करने के कई फायदे रहते हैं. आप जिससे मर्ज़ी दोस्ती कर लो और अगर ना करनी हो तो भी चलेगा गुमनाम हो जाओ. अपने बॉस को फिट रखो तो लंच टाइम में कनाट प्लेस में शौपिंग कर लो या फिर पिक्चर देख लो किसी को पता नहीं चलेगा. आप खुद बता दें तो बात और है. गुटबंदी और गुटबाज़ी भी चलती रहती है आप चाहो तो अंदर घुस कर मज़ा लो या बाहर रहकर छेड़खानी करते रहो ! 

ऐसे ही कनाट प्लेस के बड़े ऑफिस में रोहित नरूला की भी नौकरी लग गयी. जिस दिन नरूला ने ऑफिस ज्वाइन किया उसी दिन पांच और नए रंगरूट भी आ गए. इन नए रंगरूटों में एक लड़का और बाकी चार लड़कियां थीं. नए लोगों के आने पर थोड़ी देर के लिए ऑफिस में एक हलचल हुई पर फिर शान्ति छा गई. 

लंच टाइम में महिला मंडल में चर्चा हुई और सभी नए रंगरूटों का विश्लेषण भी हुआ,
- लड़कियां ज्यादा स्मार्ट हैं ना लड़कों से नहीं ?
- ना ना वो लड़का है ना रोहित नरूला वो तो ठीक लग रहा है. तेरी ननद के लिए बात करके देख. 
- जल्दी क्या है थोड़ा नज़र रखियो. तेरे ही सेक्शन में आ रहा है. वैसे तो दोनों लड़के ठीक-ठाक हैं जिसका भी संजोग मिल जाए क्यूँ जी ? 
- इनमें से दो लड़कियां तो मुझे बहुत पसंद आई. मेरी सहेली भी ना लड़का देख रही है बात करुँगी उससे. 

रिटायर होने वाले स्टाफ की पंचायत में भी बातचीत हुई, 
- तेरे बेटे ने ना दिया था ये टेस्ट?
- अरे सुसरा पढ़ताइ ना. जाने क्या करेगा ?
- ये नया लड़का आ गया है अब सारी फाईलें पटक दो इस की टेबल पर.
- ओहो ये सब तो चलता रहेगा यार, नई भर्ती आई है इनमें से कोई रिश्ता-विश्ता करने की बात कर लो मौका अच्छा है. 

नए रंगरूटों की भी लंच टाइम मीटिंग हुई. आपस में कौन हो, कहाँ से हो और कहाँ पढ़े हो वगैरा पर नोट्स एक्सचेंज हुए. एक बात रंगरूटों में कॉमन थी की सभी कुंवारे थे. 

ऑफिस फिर से ढर्रे पर चल पड़ा. पर कुछ महिलाओं की नज़र दो लड़कियों पर थी, कुछ की नज़र नरूला पर थी और नरूला की नज़र नई रंगरूट पर थी. एक दिन लंच टाइम में रोहित नरूला ने पता नहीं क्या खा लिया कि वो तो कवि बन गया. उसने जेब से पर्ची निकाल कर एक नई लड़की को कविता में कुछ यूँ कह दिया :

जब से मिला हूँ तुमसे जी,
लगता है बन गया हूँ हीरो जी,
देखता हूँ जो अपनी पासबुक को,
हीरो से हो गया हूँ ज़ीरो जी !

लग गयी नौकरी, सैलरी मिलेगी जल्द ही,
फिर घूमेंगे करेंगे शौपिंग जी,
तब तक ले आओ ना, 
डैडी की एक दो फिक्स्ड डिपाजिट जी !

लड़की पहले तो हंसी फिर एक हलकी सी चपत लगा दी रोहित नरूला के गाल पर. हलकी सी चपत थी तो उसकी आवाज़ भी हलकी थी. पर चपत की गूंज दूर-दूर तक फ़ैल गई. महिला मंडल में चर्चा हुई, रिटायर होने वालों में चर्चा हुई और फिर कुछ कनकौवों ने बात उच्च अधिकारियों के कानों तक पहुँचा दी. आप को तो पता ही है कि उच्च अधिकारियों के कान कच्चे होते हैं और प्यार मोहब्बत के बारे में दिमाग में जंग लगा होता है. आपातकालीन बैठक हुई और उच्च अधिकारियों में गंभीर और लम्बी चर्चा हुई. एकमत से प्रस्ताव पास हुआ कि हमने कभी प्यार नहीं किया तो ये नया छोरा कैसे कर सकता है. फिर वही हुआ जो आम तौर पर उच्च अधिकारी सजा देने के लिए करते हैं. रोहित नरूला की ट्रान्सफर 30 किमी दूर पालम ऑफिस में कर दी गई. 
फूल और कांटे 
पर तब तक रोहित नरूला के शादी के कार्ड तो छप चुके थे. आपको भी तो कार्ड मिला होगा ?
                  

Tuesday 9 August 2016

पहली तारीख है

महीने की पहली तारीख को सुबह मोबाइल में मैसेज आने की घंटी बजती है तो तबियत खुश हो जाती है - वाह पेंशन ! मैसेज पढ़ कर तसल्ली हो गयी, मन आश्वस्त हो गया और बिना चीनी की चाय भी मीठी लगने लगी. मुझे तो लगता है कि हर सीनियर नागरिक को पेंशन मिलनी चाहिए. खैर अब पेंशन की घंटी बज चुकी है तो इत्मीनान से पेपर पढ़ा जा सकता है.

लीजिये साब टॉप की खबर ये है की मुकेश अम्बानी ने आठवें साल भी बढ़ा हुआ वेतन लेने से इंकार कर दिया. कंपनी ने 2015 -16 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि हमने तो मुकेश अम्बानी साब के वेतन के लिए 38.75 करोड़ रुपये रख दिए हैं पर ये मुकेश अम्बानी साब है की मानता नहीं ! अक्टूबर 2009 से 15 करोड़ रुपये सालाना वेतन चल रहा है आठवें साल भी वही चलता रहेगा. भई बड़े लोगों की बड़ी बातें म्हारी समझ में तो ना आती. भई वो दे रे, थम ले लो एकाधा पेग म्हारे भी लगवा दो. पर हमारी सुनवाई ना है.

और ये भी बात है की मुकेश अम्बानी की सालाना पगार भारत के 'टॉप टेन' में नहीं है. भारत के ऊँची तनख्वाह लेने वालों की इन्टरनेट पर खोजबीन की तो पता लगा के 2014 - 15 के आंकड़ों के अनुसार करोड़ों में सालाना वेतन लेने वाले 'टॉप टेन' इस प्रकार हैं :

1. C P Gurnani, CEO / MD, Tech Mahindra .....                165.6 
2. Pawan Munjhal, CMD / CEO, Hero Motocorp .....          43.9
3. D B Gupta, Chairman, Lupin Pharma .....                       37.6
4. Aditya Puri, MD, HDFC Bank .....                                    32.8
5. Sunil Mittal, Chairman, Airtel .....                                     27.2
6. N Chandrasekharan, CEO / MD, TCS .....                      21.3
7. Rajiv Bajaj, MD, Bajaj Auto Ltd, .....                                20.5
8. Kumar Manglam Birla, Chairman, Aditya Birla Group, ...19.0
9. Y C Deveshwar, Chairman, ITC Ltd. .....                         15.3
10. Navin Agarwal, Executive Chairman, Vedanta Ltd.....   15.1


अब अगले वित्त वर्ष में ये तनख्वाहें और भी बढ़ सकती हैं क्यूंकि महंगाई भी बढ़ रही है, बोनस मिलना है और सालाना इन्क्रीमेंट भी तो लगनी होगी. फिर ये भी ख़याल आया की कुछ लोग - मतलब कि कुछ बड़े लोग ऐसे भी होंगे जो वेतन लेते ही ना हों ? फिर खोज पड़ताल की तो पता लगा कि अमेरिका में काफी ऐसे लोग हैं जो एक डॉलर वेतन पर काम कर रहे थे या कर रहे हैं. इनमें से कुछ नाम इस प्रकार हैं :

* माइकेल ब्लूमबर्ग ... न्यू यॉर्क के मेयर,
* स्टीव जॉब्स ... अप्प्ल इंक.,
* जॉन ऍफ़ केनेडी ... अमेरिका के राष्ट्रपति,
* सेरेगेई ब्रिन ... अल्फाबेट इंक. , 
* लैरी पेज ... अल्फाबेट इंक. ,
* मार्क जुकरबर्ग ... फेसबुक . 

पर भारत के ऐसे लोगों की कोई लिस्ट नहीं मिली. अगर आप की जानकारी में इस तरह के भारतीय नाम हों तो कृपया बताएं. फिर भी कुछ नाम मिले हैं जो एक रुपया प्रति माह वेतन ले रहे थे या ले रहे हैं : 

* डा. मन मोहन सिंह ..... पूर्व प्रधान मंत्री,
* बिमल जालान ..... पूर्व गवर्नर, रिज़र्व बैंक,
* नारायण मूर्ति ..... इनफ़ोसिस 

करोड़ों की तनख्वाहें पढ़ कर अपनी हजारों की पेंशन का ख़याल आ गया. कैसे बढ़ाई जाय इस पर काफी गंभीरता से विचार किया. क्यों ना पेंशन को रुपयों के बजाये पैसों में बताया जाय ? कुछ इस तरह से : 35000 रूपए x 12 महीने x 100 पैसे = 4,20,00,000 याने चार करोड़ बीस लाख पैसे सालाना. ये कुछ सही लग रहा है. इस नए तरीके से अब अपनी पेंशन में कुछ जान आ गई है क्यूँकि ये आँकड़ा सम्मान जनक लग रहा है ! आप के पास पेंशन बढ़ाने का कोई और नुस्खा हो तो बताएं ? तब तक अपनी चाय ख़तम कर लूं. 

चाय तैयार है


Sunday 7 August 2016

गाँव की ओर

स्कूल की शिक्षा पूरी हो चुकी थी और कॉलेज जाने के बीच कुछ अन्तराल था. सो कुछ समय गाँव मे रहने का मन बना लिया. खादी के एक झोले में टूथब्रश डाला, कुछ कपड़े डाले आैर बस गाँव जाने की तैयारी हो गई. पैकिंग आसान तो यात्रा आसान.

मौसम तो गरमी का था पर पहाड़ी गांव होने के कारण दोपहर बाद ठंडक रहती है. लैंसडाउन से बहुत दूर नहीं है. लैंसडाउन कभी ब्रिटिश वायसराय का 'समर रेसीडेंस' हुआ करता था पर अब वहां फ़ौज की काफी बड़ी छावनी है. एक महीने के लिए हमारी भी 'समर राजधानी' गाँव में बसेगी ! गाँव में ज्यादा घर नहीं हैं बस दस बारह घरों का छोटा सा गांव है. घर ढलान पर हैं और आस पास सीढ़ीनुमा खेत हैं घर से दूर नीचे घाटी में नदी दिखाई देती है.

गाँव जाने के लिये रेल की सवारी रात दिल्ली स्टेशन से शुरु हुई अौर तड़के कोटद्वार स्टेशन पर खत्म हो गई.  कोटद्वार एक छोटा सा शहर है जो ऊपर पहाड़ों पर जाने का द्वार है. यहाँ से लैंसडाउन, पौड़ी और श्रीनगर की ओर जा सकते हैं. यूँ कहें की कोटद्वार पहाड़ों की तलहटी याने foothills में बसा है.  इससे आगे पहाड़ी सफ़र के लिये बस, जीप या टैक्सी आसानी से उपलब्ध है.

पहाड़ियाँ और घाटियाँ 

कोटद्वार मुख्य रूप से ऊपर के पहाड़ी लोगों का बाज़ार है. मैंने भी बाज़ार से रास्ते के लिये गुड़, भुने चने व लड्डू ले लिये. खुद भी खाएंगे और गांव के बच्चों को भी खिलाएंगे. बस स्टॉप नजदीक ही था. जब बस में सवारियां लद गयीं और गढ़वाली गाने बजने लगे तो लगा की गांव पास आ गया है।

एक घंटे के सफ़र में ड्राइवर ने कई गढ़वाली गीत सुनवा दिए. इन लोक गीतों का अपना ही मज़ा है. ये गीत या तो प्रेम रस पर, किसी फ़ौजी की शहीदी पर या फिर सास बहु के किरदारों पर होते हैं. इनमें लोकल पहाड़ी वाद्यों का संगीत मजेदार लगता है. एक गीत 'कन भग्याना मोटर चली सरा-रारा प्वां प्वां' अभी भी कानों में गूँज जाता है तो चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है  साथ ही खिड़की से हरे भरे पहाड़ और जंगल नज़र आने लगे ठंडी हवा के झोंकों ने दिल्ली की धूल भरी गर्मी को भुला दिया. पर बस के हिचकोलों से कमर दोहरी हो गई. बस जब ऊपर की ओर मोड़ काटती तो लगता कि हो गयी जय राम जी की !

ऊँची नीची राहें 

ख़ैर एक घंटे के सफ़र के बाद ऊपर सड़क पर अपने गांव के नज़दीक उतर लिये. अपना झोला कन्धे पर डाला और सड़क के किनारे थोड़ा चहल कदमी कर के पैर सीधे किये. ठंडी और ताज़ी हवा में गहरी और लम्बी साँसें ली. अब उस पगडण्डी पर नज़रें टिका दी जिस पर पौन घंटा नीचे की तरफ चलना होगा.

सुबह की हवा में ठंडक थी, आस पास सुनसान बियाबान था और दूर दूर तक न कोई आदम न आदम जात. नीचे जाती पगडण्डी कहीं पथरीली थी कहीं मिट्टी वाली. सालों से लगातार उस पर आवाजाही के कारण पत्थर चिकने हो गए थे और पैर फिसल रहा था.

कुछ देर के बाद मोड़ लेते ही चीड़ का घना जंगल शुरु हो गया। चीड़ के ऊँचे लम्बे पेड़ पहाड़ियों को जकड़े खड़े थे. हवा में चीड़ की एक ख़ास महक थी. इन पेड़ों के पत्ते सुइयों जैसे होते हैं जिनमें से हवा बहने की हलकी सी सरसराहट आ रही थी. तेज़ हवा आती तो कभी सीटी बजती सुनाई पड़ रही थी. मन एकदम तरोताज़ा हो गया. एक पत्थर पर बैठ कर सुस्ताने लगी. सुबह से कुछ खाया भी नहीं था तो अब गुड़ चने का आनंद लिया जाए. अपना झोला झाड़ी पर लटकाया और वही बैठ गई. खा पीकर शरीर में चेतना आ गयी.

दूर दूर तक कोई नहीं था बस एकदम सुनसान. कभी कभी पक्षियों की आवाज़ या फड़फड़ सुनाई पड़ रही थी. पहाड़ के एक तरफ़ घना जंगल, दूसरी ओर एक गांव और सामने नीचे सीढ़ीनुमा खेत थे. ठण्डी हवा के झोंको का आनन्द लेते हुए नीचे ढलान की तरफ़ चल पड़ी. ज़मीन चीड़ की सुई जैसी पत्तियों से ढकी थी. पत्तियों पर चलने से कहीं कहीं पैर फिसल रहा था. जिम कोर्बेट अभयारण्य भी इन पहाड़ीयों से मात्र दस पंद्रह किमी दूर है सो जंगली जानवर यदा कदा टहलने भी आ जाते हैं - ख़तरा !

रास्ता अब सीढ़ीनुमा खेतों और फलदार पेड़ों के बीच से होकर गुजर रहा था. एक के बाद एक खेत उतरते हुए पगडण्डी गोलाई में घुम गई और सामने पथरीली खड़ी उतराई आ गयी. नीचे पानी की एक पतली धारा बह रही थी. उस तरफ उतरना शुरु किया तो लगा पुरा वज़न पंजो पर आ गया है. चढ़ाई चढ़ना तो मुश्किल है ही उतरना भी कम मुश्किल नहीं है.

बहुत कठिन है डगर गाँव की  

नीचे पानी के पास पहुँचते ही जूते खोल कर पैर पानी में डाल दिये. हाथ मुँह धो कर ताजगी आ गयी. बैठे बैठे विचार आता रहा कि यहाँ का जीवन कितना कठिन है. पानी की धारा को लांघ कर फिर नीचे उतरना शुरु किया. अब गांव के घर नज़र आने लगे थे और कुछ कुछ आवाज़ें भी सुनाई पड़ने लग गई थी. चूँकि गाँव में आने जाने वाले कम होते हैं इसलिए नए आने वाले पर सबकी नज़र रहती है. दूर से ही ताई ने देखा कोई लड़की आ रही है. तुरंत हथेलीयों से आँखों पर दूरबीन बनाई और एकटक देखती रही. फिर पहचान भी गई. एक सेकंड में खबर गांव में फैल गई.

गांव के इस छोर पर पहला ही मकान हमारा है. जब तक वहां पहुंचती गाँव के बच्चे व बड़े बूढ़े पहले ही इकट्ठे हो चुके थे. थोड़ी देर के लिए शांत से गांव में शोर मच गया. बच्चे हाथ लगा लगा कर शोर मचाने लगे,
- बुआ आ गई !
- दीदी आ गई!
- कन तेर बोई बुबा न अकेला भेजी ( तेरे माँ बाप ने अकेला भेज दिया ) ?
- डोर नी लग ( डर नहीं लगा ) ?
- भलू कार ,पढया छिन ,अपड़ देस देखण चैंद ( भला किया, पढ़ी लिखी है, अपना देस देखना चाहिए ) !
- ख़ूब बणिया रऔ ( खूब सुखी रहो ) !

बड़ों के पैर छुए, बच्चों को गुड़ चने बांटे तब तक चाय आ गयी.

बुआ के साथ 



- गायत्री, नई दिल्ली.