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Tuesday 6 September 2016

नीम हकीम

कायदे से तो रंगरूटों से, अनाड़ियों से और नीम हकीमों से बच के रहना चाहिए. अगर कोई नौसिखिया L लिख कर गाड़ी चला रहा हो तो तुरंत वो रास्ता छोड़ दीजिये. अगर कोई ट्रेनी होटल में आपकी सेवा कर रहा हो और आपने वेज आर्डर किया हो तो वो शायद नॉन-वेज ही ले आएगा. या अनाड़ी मिस्त्री से अपनी फटफटिया में पंचर बनवाया तो पहिया फिट करने के बाद शायद ब्रेक कसना भूल जाएगा. पर हमारा वास्ता पड़ गया मेडिकल कॉलेज के नौसिखिया याने इंटर्न डॉक्टर से.

- डॉक्टर साब एक महीना हो गया दवाई लेते हुए पर ये बाजू पर से खुजली ख़तम ही नहीं हो रही. वैसे का वैसा लाल निशान बना हुआ है.
- हूँ. हाँ ये तो वैसा ही है. आप एक टेस्ट करा लो.
- जी ठीक है.
- पहले सामने वाले केबिन में प्रोफेसर गुप्ता हैं उन्हें दिखा लो.
प्रो. गुप्ता स्किन स्पेशलिस्ट से मिलकर हाल बताया,
- डॉक्टर साब एक महीने से दवाई ले रहा हूँ पर ये देखिये ठीक ही नहीं हो रहा. वो डॉक्टर कह रहीं हैं कि टेस्ट करा लो.
- हूँ. कब से है ? पर्चा दिखाओ ? पहले से कम नहीं हुआ ? हूँ टेस्ट करा ही लो अच्छा रहेगा.
पर्चा लेकर वापिस असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर श्रीमती सक्सेना के पास पहुँच गए.
- डॉक्टर साब प्रोफेसर गुप्ता कह रहे हैं के टेस्ट करा ही लो.
- हाँ मैंने तो पहले ही कहा था आपको. आप बैठो जरा.

घंटी मार के श्वेता को बुलाया. श्वेता पतली दुबली लड़की सफ़ेद कोट पहने हुए हाज़िर हो गई जाहिर था कि मेडिकल की छात्रा रही होगी.
- इनका टेस्ट कर दो, पता है ना कैसे करना है ? इनको साथ ले जाओ. आप जाइए इनके साथ.

- आप यहाँ लेट जाइए प्लीज, डॉ. श्वेता ने कहा और झट से एक डॉ. कविता भी आ गयी. उसने भी सफ़ेद कोट पहना हुआ था. मतलब दोनों ही छात्राएं थी. दोनों ने तैयारी शुरू कर दी. एक दूसरे को बताती भी जा रहीं थी.
- कॉटन रख ली ? इंजेक्शन ले लिया ? लोकल अनस्ठेशिया ले लिया और टेस्ट ट्यूब ?
उनकी बातों से नौसिखिया-पन साफ़ झलक रहा था. खुदा खैर करे !

- आप बाजू सीधा रखें, डॉ. श्वेता ने कहा. कलाई पर एक जगह रुई से दवाई लगाई फिर वहां इंजेक्शन लगा दिया.
- दर्द है ? अब कम है ? अब नहीं है ? नहीं है न ?
- नहीं दर्द नहीं है. सुन्न हो गया है.
इस बीच केबिन में कोई आया. डॉ. श्वेता बोली,
- हरेंदर सुबह से नज़र नहीं आये ? इतनी जोर से भूख लगी हुई है. ये लो कुछ खाने के लिए ले आओ.
- अभी लो जी. क्या लाऊं ? जूस ?
- अरे आपको खाने को बोला है आप जूस की बात कर रहे हो. जल्दी ले आओ. जो मिलता है वही ले आओ. आपको दर्द तो नहीं हो रही है ? कविता वो बॉक्स देना.
- डॉ साब आप पहले नाश्ता कर लो.
- हूँ ! कहकर डॉ श्वेता ने बॉक्स में से लम्बी सी सलाई निकाली जिसके सिरे पर गोलाई में बारीक दांत बने हुए थे जैसे मिनी गियर हो. उसे स्किन पर लगा के जोर से दबा के गोल घुमाया तो चमड़ी का पीस बाहर निकल आया. उसे टेस्ट ट्यूब में डाल दिया.
- कविता इनकी बैंडेज कर दो.

डॉ श्वेता ने टेस्ट ट्यूब पर चेपी लगा कर नाम लिख दिया और ट्यूब का मुंह सील बंद कर दिया. अब सैंपल लेकर हम तीनों फिर असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर श्रीमती सक्सेना के पास वापिस पहुंचे. वो देखते ही तुनक कर बोली,
- ये क्या किया श्वेता ? हेल्दी स्किन का सैंपल निकाल लिया ? जहाँ इन्फेक्शन है वहां से सैंपल लेना था. दोबारा करो.

ये होता है अनुभव दूर से ही भांप लिया. चलिए साब हम तीनों के चेहरे उतर गए. तीनों वापिस केबिन में आ गए. फिर लिटाया गया, इस बार दूसरी जगह पर अनेस्थिशिया लगाया गया, फिर से इंजेक्शन लगाया गया और फिर से चमड़ी उधेड़ दी गई. चमड़ी नई टेस्ट ट्यूब में डाल कर डॉ श्वेता द्वारा नाम की चेपी लगा दी गई और ट्यूब का मुंह सील कर दिया गया. डॉ. कविता ने नई पट्टी कर दी और टेस्ट ट्यूब लेकर लैब की ओर प्रस्थान कर गयी. डॉ. श्वेता बर्गर खाने लगी और हम कलाई पर दो पट्टियाँ बंधवा कर बाहर नीम के नीचे बेंच पर बैठ गए.
नीम हकीम ख़तरा-ए-चमड़ी !

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इंतज़ार करें 


2 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

लिंक : https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/09/blog-post.html

A.K.SAXENA said...

Very nice description. In doctors ki fitrat tum jaante nahin,kaanta nikalte hain,ye,taaang kaat kar.