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Friday 16 September 2016

बदलाव की गाड़ी

साइकिल थी तो धीरे धीरे मजे मजे में चलाते थे. गांव से शहर तक जाने में एक घंटा लग जाता था. अगर शहर की तरफ जाते जाते शहर से वापिस आता हुआ हरेंदर मिलता तो हम पैडल रोक लेते और बायां पैर सड़क पर टिका कर खड़े हो जाते थे. वो भी सड़क के दूसरी तरफ बायां पैर टेक कर खड़ा हो जाता था और दोनों बतिया लेते,
- अबे कित गया था ?
- नूं इ दर्जी तक गया था. तू कित जा रा ?
- चिट्ठी गेरने बड्डे डाकखाने.
- जा तू.
- यो अमरुद खा ले.
हम दोनों दाहिने पैर से अपनी अपनी साइकिल के पैडल दाब देते और अपने अपने रस्ते हो जाते थे. दूर दूर तक सड़क खाली. कभी कभी कोई खरगोश या लोमड़ी या सांप रस्ता काट जाता था पर बाकि शान्ति रहती थी.

फेर फटफटिया आ गई तो बस बीस मिनट में शहर. गाँव के खेतों में से शहर की तरफ फटफटिया चलाने में बड़ा मजा आवे था. एक तो खाली सड़क पे फटफट की गूँज और दूसरे कमीज के कॉलर की फड़-फड़. भई वाह सारे पैसे वसूल ! शहर से आता हरेंदर दिखा तो ब्रेक मारी, बायां पैर सड़क पर टिकाया और फटफट रोक के खड़े हो गए. परली साइड हरेंदर ने अपनी फटफटिया रोकी,
- अबे कित गया था ?
- नूं इ कट्टिंग करान गया था. और तू कित जा रा ?
- फोटू खिंचाई थी परले रोज वो लेन जा रा.
- जा तू.
- यो ले अमरुद.
दोनों ने गियर डाले और दोनों फटफटिया विपरीत दिशा में दौड़ने लगी. थोड़े बहुत साइकिल वाले और दो एक दुपहिया नज़र आने लगे थे सड़क पर. कभी कभी ट्रेक्टर या तिपहिया भी मिल जाता था.

फेर आ गई मरूति. लेनी जरूरी थी भई मूंछ का सवाल था जबकि मूंछ में भी सफेदी आ गई है. अब कार से शहर जाने में आधा घंटा लगने लग गया है जबकि शहर बढ़ता हुआ खुद ही गांव के नज़दीक आ रहा है. साइकिल, दुपहिया, तिपहिया और चौपहिया ज्यादा हो गए हैं. ट्रेक्टर में ट्राली जुड़ गई है. बैलगाड़ी और तांगा अभी भी हैं. इसलिए अब कार धीरे धीरे चलाते हैं. अब अक्सर सड़क पर कुचला हुआ सांप और मरे हुए कुत्ते भी दिखने लग गए हैं. अब शहर जाते हुए अगर सामने से हरेंदर की गाड़ी दिखती है तो बस हम दोनों एक दूसरे को हाथ हिला देते हैं रुकते नहीं.
कई बार हाथ भी नहीं हिला पाते.
अमरुद का आदान प्रदान भी अब बंद हो गया है.

बदलाव 

  

1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/09/blog-post_98.html