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Saturday 5 November 2016

नौकरी

पति की एक्सीडेंट में मृत्यु होने के बाद पत्नी शकुंतला को काफी दौड़ भाग करनी पड़ी पर बैंक में नौकरी मिल ही गई. पति खजांची थे और चूँकि शकुंतला दसवीं पास थी इसलिए उसे भी खजांची के पद पर रख लिया गया. थोड़ी बहुत ट्रेनिंग और स्टाफ की थोड़ी मदद से काम सीख लिया और नौकरी शुरू हो गई. इसके साथ ही शकुंतला के मन में स्थिरता और तस्सल्ली आ गई.

अब शकुंतला का ध्यान इकलौते बेटे पर रहता था जो इस साल दसवीं में आ गया था और अब उसे बोर्ड का इम्तेहान देना था. पढने में तो सामान्य ही था पर शकुन्तला उस पर लगातार डांट कर और दबाव देकर 'राजू पढ़ ले पढ़ ले' करती रहती थी. राजू को लुभाने के लिए मोबाइल फ़ोन इनाम में देने की भी घोषणा कर दी. और अगर बहुत अच्छे नंबर आये तो मोबाइल फ़ोन के अलावा स्कूटी भी देने का वादा कर दिया. 
राजू बेटा दसवीं पास कर गया और मोबाइल फ़ोन का मालिक बन गया. पर स्कूटी के लायक नंबर नहीं आये इसलिए स्कूटी नहीं मिली पर राजू की मांग जारी रही. स्कूल भी बदल कर दूर वाले इंटर कॉलेज में दाखिला ले लिया था जहाँ साइकिल से जाना पड़ता था. अब रोज रोज की झिकझिक होने लगी और किसी किसी दिन माँ बेटे में गरमा गरमी की नौबत भी आ जाती.
स्कूटी के साथ साथ जेब खर्च बढ़ाने की मांग होने लगी. शकुंतला ने लोन लेकर स्कूटी दिलवा दी और जेब खर्च भी बढ़ा दिया. तीन महीने में ही स्कूटी से राजू का जी भर गया और वो कहने लगा ,
- क्या लड़कियों वाली गाड़ी ले कर दी है. मोटरसाइकिल होनी चाहिए थी. लड़के लोग मेरी स्कूटी देख कर हँसते हैं और मज़ाक उड़ाते हैं. ना कोई लड़का मेरे साथ स्कूटी पर बैठता हैं ना कोई लड़की.

समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था और राजू की मोटरसाइकिल की मांग तेज़ और ऊँचे सुर में हो रही थी. आखिर दूसरा लोन लेकर ये मांग भी पूरी कर दी. अब कॉलेज का शिमला का टूर आ गया तो राजू ने और पैसे मांगे. शकुंतला ने दे तो दिए पर अब हाथ तंग होने लगा लेकिन कोई सुनवाई नहीं थी. शिमला टूर के बाद राजू घर में एक दो सहेलियां भी लाने लगा तो खर्चा और बढ़ गया. पैसों की मांग बढ़ रही थी और राजू के नंबर घट रहे थे. राजू दिन ब दिन बेलगाम हो रहा था पर शकुन्तला कुछ नहीं कर पा रही थी. जब भी हाथ तंग होने का जिक्र करती तो राजू का पारा चढ़ जाता था. 

बैंक में पेट्रोल पंप वाला मुन्ना अक्सर काफी कैश जमा कराने आता था. इस बार वो पांच लाख जमा कराने लाया. शकुंतला ने दो बार गिने और डरते डरते एक पांच सौ का नोट अपने पैरों के पास गिरा दिया. मुन्ना को आवाज़ लगा कर बोली, 
- अरे मुन्ना भैया पांच सौ का एक नोट कम है इसमें. 
शकुन्तला का मन घबरा रहा था और डर भी लग रहा था. पर जब मुन्ना ने बिना ना नुकुर के एक पांच सौ का नोट और दे दिया तो शकुन्तला की जान में जान आ गई. उस ने एक गिलास पानी पिया और नार्मल हो गई. मुन्ना के जाने के बाद नोट उठा कर पर्स में डाल लिया. दो दिन इंतज़ार किया बैंक में किसी तरह की हलचल नहीं हुई. शकुन्तला आश्वस्त हो गई और फिर चार दिन बाद अगला शिकार करने के लिए तैयार हो गई. इस बार पांच सौ के दो नोट पार कर दिए.

फिर तो हर महीने चार पांच हज़ार के नोट गायब होने लगे और राजू की जेब खर्ची की पूर्ती होने लग गई. पर मैनेजर साब के पास शिकायतें भी आने लग गयी. मुन्ना भैय्या और मैनेजर साब ने एक दिन प्लान बनाकर नोटों के नंबर लिख लिए और छापा मार कर रंगे हाथों पकड़ लिया. शकुंतला को ससपेंड कर दिया गया. जांच के दौरान पता लगा की जिस दिन कैश कम होने की शिकायत होती थी उसी दिन या अगले दिन राजू के खाते में पैसे जमा हो जाते थे. जांच के बाद शकुन्तला को दोषी पाया गया और नौकरी से निकाल दिया गया.     

चाह मिटी चिंता मिटी मनवा बेपरवाह I
जाको कुछ नहीं चाहिए वा ही शहंशाह II - कबीर 



2 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/11/blog-post_5.html

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Aarav Chauhan