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Wednesday 28 December 2016

लिफाफा

सूट, बूट और लाल टाई लगा कर नरूला साब तैयार हो गए. आज श्रीमती के साथ एक शादी में जाना था जो एक मशहूर बैंक्वेट हाल में हो रही थी. वहां का टाइम आठ बजे का था इसलिए घर से आठ बजे चलना ठीक था. वहां तक 40 मिनट में पहुच जाएंगे. पर पहुंचे 60 मिनट में और 20 मिनट लग गए पार्किंग ढूंढने में. नरूला साब गाड़ी पार्क करके बड़े तीन मंजिले बैंक्वेट के सामने आ पहुंचे.

जोरदार सजावट और फ़िल्मी संगीत ने उनका स्वागत किया. बहुत रश था सूट वालों का, साड़ी वालियों का और बच्चों का. कुछ बैंड वाले इंतज़ार में खड़े थे और कुछ गुब्बारे वाले भी थे. उन्हें लगा की यहाँ तो कई शादियाँ हो रही हैं. एक शादी ग्राउंड फ्लोर पर, दूसरी फर्स्ट फ्लोर पर और तीसरी बेसमेंट में. नरूला साब असमंजस में थे की कौन से फ्लोर पर जाना है. श्रीमती जी ने कहा,
- कार्ड देख लो? कार्ड नहीं लाए? हमेशा बोलती हूँ की कार्ड साथ में रख लिया करो पर मानते नहीं हो. बोर्ड पर नाम लिखे हुए हैं वहां पढ़ लो.
- जाता हूँ जाता हूँ, कह कर नरूला साब रिसेप्शन के पास रखे लाल बोर्डों पर नज़र मारने लगे. तीन लाल बोर्ड थे जिन पर सुनहरे अक्षरों में तीन जोड़ों के नाम लिखे हुए थे,

- राहुल *** स्वाति,
- रोहित *** श्वेता और
- राजीव *** सौम्या.

अब नरूला साब को लगा की शादी वाले इन बच्चों के नाम तो पता ही नहीं हैं! उन्हें तो कार्ड दिया था अनिल कुमार ने. उन्होंने बोर्ड पर होस्ट के नाम पढ़ने शुरू किये,

- जुनेजा परिवार,
- सुनेजा परिवार और
- तनेजा परिवार.

ओहो इनमें से अनिल कुमार का परिवार कौन सा है ये भी तो नहीं मालूम! ऑफिस में तो अनिल को अनिल कुमार के नाम से ही जानते हैं. वो जुनेजा है या सुनेजा या तनेजा ये तो मालूम ही नहीं था.
- तुम्हें कुछ पता तो होता नहीं? शादी में शामिल होने आ गए हो कमाल है? ठण्ड में लाकर खड़ा कर दिया.
- रुको तो सही. मैं ग्राउंड फ्लोर में नज़र मारता हूँ शायद अनिल मिल जाए. तुम रुको यहाँ.
नरूला साब को अंदर अनिल कुमार तो नज़र नहीं आया पर उस बड़े से हाल के एक कोने में बार और बोतलें जरूर नज़र आई. एक पेग लेकर गला तर किया और इधर उधर देखा पर अनिल कुमार नहीं नज़र आया. हाल में से निकलने से पहले मन डोल गया एक पेग और खींच लिया. बाहर आकर देखा तो श्रीमती नदारद. मोबाइल मिलाएं तो मिले ना या जवाब मिले की 'ये नंबर पहुँच के बाहर है'. वैसे तो ठीक जवाब ही था पत्नी तो पहुँच के बाहर ही तो होती है?

नरूला साब बेसमेंट वाली शादी में घुस गए. पता चला की श्रीमती जी को श्रीमती गोयल वहां ले गई थी. दोनों आलू टिक्की के चटकारे ले रही थीं और साड़ियों पर कमेंटरी चल रही थी. नरूला साब ने भी नमस्ते करके चाट वाले की तरफ रुख किया. नज़र मारते रहे पर अनिल कुमार कहीं दिखाई नहीं पड़े. श्रीमती को बताया तो वो बोली,
- देखो जी अब यहाँ खा पी लिया था इसलिए मैंने तो लिफाफा दे दिया है. ऐसे अच्छा नहीं लगता है की खा तो लो पर शगुन ना दो. अब आप अनिल कुमार को ढूँढो और दूसरा लिफाफा बना कर दे दो.
- अरे यार ग्राउंड फ्लोर पर अनिल है नहीं, यहाँ बेसमेंट में भी नहीं है तो फर्स्ट फ्लोर पर ही होगा. चलो वहीं चलते हैं.
- चलो. एक तो ये डीजे इतने बज रहे हैं कि कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता, चलो चलो.
ऊपर अनिल कुमार मिले तो नरूला साब ने कहा,
- अनिल कुमार जी आप जुनेजा हो मुझे पता नहीं था वो तो बोर्ड देख कर ही पता लगा. आपको बहुत बहुत मुबारक और ये रहा बच्चों के लिए शगुन.
फिर नरूला साब ने श्रीमति जी के साथ इत्मीनान से डिनर लिया और घर की ओर प्रस्थान किया.
रास्ते में नरूला साब सोचते रहे कि एक लिफाफा फर्स्ट फ्लोर पर दे दिया दूसरा बेसमेंट में दे दिया तो तीसरा ग्राउंड फ्लोर पर भी दे आता तो अच्छा था.

मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं 


2 comments:

A.K.SAXENA said...

मजेदार प्रसंग। सही बात आपने तजुर्बे की बताई
पत्नी हमेशा पहुंच के बाहर होती है।धन्यवाद्।

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Saxena ji.