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Saturday 28 January 2017

पुष्कर

अरावली पहाड़ियों में स्थित पुष्कर, अजमेर शहर से 12 किमी दूर है और दिल्ली से लगभग 415 किमी. इस छोटे से शहर को तीर्थराज, पुष्करतीर्थ या पुष्करराज भी कहते हैं. पूरा शहर एक झील के किनारे बसा हुआ है और यहाँ बीसियों छोटे बड़े मंदिर हैं. राजस्थान के थार मरुस्थल की शुरुआत भी यहाँ से कही जा सकती है जो आगे बीकानेर, जैसलमेर और जोधपुर की ओर बढ़ जाता है.

पुष्कर एक ऐतिहासिक जगह है जिस से बहुत सी कथाएँ जुड़ी हैं:
- भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती के देहांत पर इतने आंसू बहाए की दो झीलें बन गईं पुष्कर और कटास( जो अब जिला चकवाल, पाकिस्तान में है ),
- भगवान ब्रह्मा ने महायज्ञ के लिए पुष्कर को चुना. आहुति के समय उनकी पत्नी सावित्री उपस्थित नहीं हुई तो उन्होंने स्थानीय गुर्जर कन्या गायत्री से विवाह करके यज्ञ पूरा किया. इसपर सावित्री ने गुस्से में श्राप दे दिया कि ब्रह्मा की पूजा केवल पुष्कर में ही होगी और कहीं नहीं.
- पांडवों ने कुछ समय यहाँ बिताया था. सुभद्रा हरण  के बाद अर्जुन ने यहीं कुछ समय विश्राम किया था.
- गौतम बुद्ध ने यहाँ दीक्षा दी थी,
- अगस्त्य, जमदाग्नि, वामदेव और भृतहरि मुनियों ने यहाँ तपस्या की थी. पाराशर ऋषि का जन्मस्थान भी यहीं है.
- सरस्वती नदी पुष्कर के आसपास ही लुप्त हो गई थी.
- औरंगजेब के समय बहुत से मंदिरों को गिरा दिया गया जो धीरे धीरे फिर से बनाए गए.
- 1705 में गुरु गोबिंद सिंह ने यहाँ गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ किया.
- 1911 में महिलाओं के लिए अलग घाट बनवाया गया.
- महांत्मा गाँधी की अस्थियां भी यहाँ प्रवाहित की गईं थी .

वर्तमान में यहाँ तीर्थ यात्रियों के अलावा फिरंगी सैलानी भी बहुत आते हैं. शायद यहाँ का शांत वातावरण और दोस्ताना माहौल काफी पसंद आता होगा. इसीलिए कॉफ़ी से लेकर पिज़्ज़ा तक यहाँ सभी कुछ मिल जाता है.

पुष्कर पहुँचने के लिए सड़कें अच्छी हैं. रेल अजमेर तक और हवाई सुविधा जयपुर तक उपलब्ध है. यहाँ का मशहूर मेला है - पुष्कर पशु मेला जो विश्व के सबसे बड़े मेलों में से एक है. यह अक्टूबर-नवम्बर में पांच दिन लगता है. सैर सपाटे के लिए अक्टूबर से मार्च का समय अच्छा है.

पुष्कर का मुख्य बाज़ार झील के साथ साथ चलती सड़क पर है. बाज़ार में पूजा पाठ सम्बंधित सामान ज्यादा है. वैसे तो पुष्कर 2 - 4 घंटों में पैदल देखा जा सकता है. पर रुकना हो तो धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध हैं.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:  


पुष्कर झील 

पुष्कर झील पर बने घाट

पुष्कर के घाट

पुष्कर बाज़ार में पूजा के सामान की दुकान 

सभी का स्वागत है 

बाज़ार की गश्त 

शायद सजाने के लिए हैं ना कि चलाने के लिए 

जैन मन्दिर 

बाज़ार में छोटे छोटे कैफ़े भी हैं जो फिरंगियों में लोकप्रिय हैं 

बाज़ार भी और धर्मशाला भी 

श्री राम वैकुण्ठ मंदिर दक्षिण भारत शैली में 

बाज़ार के पीछे एक मस्जिद भी

पूजा पाठ का सामान 

होटल की बालकनी से एक दृश्य 

सुबह का कीर्तन 

पुष्कर झील का एक घाट. पीछे गुरुद्वारा नज़र आ रहा है 

पुष्कर में सांझ ढली  



Wednesday 25 January 2017

जैसलमेर वार म्यूजियम

पोकरण से जैसलमेर जाते हुए रास्ते में ऊँचा तिरंगा फहराता हुआ दिखाई पड़ा. नज़दीक जाने पर पता लगा कि वहां तो जैसलमेर वार म्यूजियम है. गाड़ी पार्क करके अंदर देखा तो तबियत खुश हो गई.

जैसलमेर जिले की सीमा पाकिस्तान से मिली हुई है. यहाँ लोंगेवाला में 4 दिसम्बर 1971 की रात में पाकिस्तान ने 2000 सैनिक, 45 टैंक और 500 गाड़ियों लेकर आक्रमण किया. और मुकाबले में थे 120 जवान, M-40 तोप से लैस एक जीप, 4 हंटर लड़ाकू विमान और एक कृषक विमान. तीन दिन तक चले युद्ध के नुकसान का स्कोर - भारत : 2 जवान शहीद और एक एंटी-टैंक गन नष्ट, पाकिस्तान : 179 सैनिक मारे गए, 37 टैंक और 100 से ज्यादा गाड़ियां नाकारा. इन्हीं में से टैंक, रिकवरी ट्रक और कुछ हथियार म्यूजियम में रखे हुए हैं.

इस म्यूजियम का उद्घाटन 20 अगस्त 2015 को ले.जन. अशोक सिंह GOC-in-C, दक्षिणी कमान ने किया. यहाँ दो बड़े हाल हैं - इंडियन आर्मी हाल जिनमें सेना के ऐतिहासिक फ़ोटो, सैनिकों की वर्दियां और हथियार वगैरा प्रदर्शित किये गए हैं और दूसरा है लोंगेवाला हॉल जिसमें दिसम्बर 1971 के युद्ध की फोटो और इस्तेमाल किये गए कुछ हथियार भी रखे हुए हैं. एक दीवार है 'वेलोर वाल' जिस पर काले पत्थर पर सुनहरे अक्षरों में सम्मानित वीरों के नाम है. इसके आलावा एक छोटे से थिएटर में फिल्म दिखाने की व्यवस्था है, सुवेनिर शॉप और कैफ़े भी है. म्यूजियम सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक रोज़ खुला रहता है.

जैसलमेर से आते जाते जरूर रुकें और जानकारी बढ़ाएं. शहर से म्यूजियम केवल 10 किमी दूर है. देख कर मज़ा भी आता है और दिल में जोश भर जाता है. जयहिन्द !


म्यूजियम के गेट पर 

प्रथम विश्व युद्ध के साइकिल सवार भारतीय सैनिक का मॉडल 

बर्फानी हवाओं से बचाव के लिए वर्दी 

गैस और रासायनिक युद्ध के लिए ख़ास वर्दी 

विजयंत टैंक 

दुश्मन का शेर्मन टैंक जो शर्म से झुक गया   

दुश्मन का एक और बर्बाद टैंक T 59  

साथ लाए थे रिकवरी ट्रक पर दुश्मन की अपनी जान की रिकवरी मुश्किल हो गई    

छोटे 'हंटर' का बड़ा कमाल - दुश्मन के टैंक जहाँ थे वहीँ जाम कर दिये  

शान से लहराता तिरंगा 

The Warrior Cafe 
Life is adventure 



Friday 20 January 2017

मंडावा की हवेलियाँ

मंडावा एक छोटा सा ऐतिहासिक शहर है जो कि राजस्थान के झुंझनु जिले में है. दिल्ली से लगभग 250 किमी दूर है और जयपुर से 190 किमी की दूरी पर है. कहा जाता है कि 1740 में यह जगह मांडू जाट का वास या मांडू वास कहलाती थी. कालान्तर में इस जगह का नाम मंडावा हो गया. यह मंडावा आजकल अपनी छोटी बड़ी हवेलियों और उन हवेली की दीवारों पर बनी चित्रकारी fresco के लिए मशहूर है.

झुंझनु और सीकर जिले किसी समय शेखावटी राज का हिस्सा थे जिसे राव शेखा ( जन्म 1433 निधन 1488) ने बसाया था. इन हवेलियों को शेखावटी हवेलियाँ भी कहा जाता है. ज्यादातर हवेलियाँ 100 से 300 साल तक पुरानी हैं. कुछ तो बहुत ही खस्ता हालत में हैं, कुछ में हवेलीदार खुद रहते हैं और कुछ को ठीक ठाक करा के होटल में बदल दिया गया है. देसी सैलानियों के अलावा फिरंगी भी यहाँ काफी आते हैं.

इन हवेलियों के मालिक ज्यादातर धनी व्यापारी थे. झुंझनू, सीकर, बीकानेर, जैसलमेर और जोधपुर अंतर्राष्ट्रीय व्यापारियों के पड़ाव थे. ऊँटों के कारवां कराची, पेशावर और काबुल वगैरा से सोना, चांदी, हीरे जवाहरात, सिल्क, अफीम वगैरा लाते ले जाते थे. 1850 के आसपास कारवां घटने लग गए और व्यापर पानी के जहाजों से होने लग गया था. स्थानीय मारवाड़ी व्यापारी कलकत्ता, मुंबई और चेन्नई बंदरगाहों की तरफ निकल गए. हवेलियाँ धीरे धीरे खाली हो गईं.

झुंझनू जिले की सड़कें बहुत अच्छी हालत में नहीं हैं और हैं भी दो लेन की. आसपास का इलाका ज्यादा विकसित नहीं है. सड़कों पर अक्सर मवेशी घुमते नज़र आ जाते हैं. यदाकदा नीलगाय या जंगली ऊंट भी रास्ता काट सकता है इसलिए गाड़ी सावधानी से चलानी होगी.

वैसे तो मंडावा एक ही दिन में देखा जा सकता है पर अगर रुकना हो तो हवेली में ठहरने की जगह मिल सकती है. अक्टूबर से मार्च तक का समय घूमने के लिए अच्छा है.

दीवारों और छतों पर सुंदर चित्रकारी मेहनत का काम है इसलिए चित्रकारों की दाद देनी होगी. साथ ही पक्के और चटक रंगों का चुनाव भी शानदार है जो दशकों तक टिका रहता है.
प्रस्तुत हैं कुछ चित्र :

निमंत्रण देती हुई हवेली - पधारो म्हारे देस   

होटल बनी हवेली

दीवारें, मुंडेरें और छतें कैनवास मानकर सुंदर और बारीक चित्रकारी की गई है 

स्नेह राम लडिया की हवेली में एंटीक चीज़ों की सेल 

पधारो सा  

हाथी की चित्रकारी करीबन हर हवेली में है शायद शाही सवारी हुआ करती थी इसलिए. जबकि इस इलाके का मौसम हाथियों के बजाए ऊँटों के अनुकूल है

हवेलियाँ बहुत हैं और चित्रकारी भी इतनी है कि मंडावा को ओपन एयर आर्ट गैलरी भी कहा जाता है 

हवेली में स्टेट बैंक ऑफ़ बीकनेर एंड जयपुर की शाखा 

बैंक वाली हवेली की दाहिनी दीवार पर चित्रकारी - अंग्रेजी साइकिल, कार और बग्गी भी 

हवेलियों के बीच एक चौक 

होटल में तब्दील हो चुकी एक हवेली 

अंदर हो या बाहर हवेली की हर दीवार और छत पर चटक रंग बिखरे हुए  हैं


मुनीम जी का कमरा 

साफ़ सफाई वाली हवेली - या तो होटल है या फिर सेठ जी खुद रहते हैं 

हवेली की छत से मंडावा का एक दृश्य. पीछे है मंडावा किले की बुर्जी 

समय के चक्रव्यूह में फंसा मंडावा. कभी अच्छे दिन भी देखे होंगे इन गलियों ने  
ऐसा लगता है कि साफ़ सफाई की कमी ने मंडावा की टूरिज्म की संभावनाएं कुछ घटा दी हैं 

मंडावा का मुख्य मार्ग 

समय के साथ लाख की चूड़ियों का काम भी लगभग ख़त्म हो गया है 

ठण्ड के दिनों में घेवर का आनंद लें 

मंडावा किले के चोबदार 

इस तरह के खम्बों का मतलब मीठे पानी का कुआँ 

लाल निशान मंडावा दिखा रहा है. पंजाब की हरियाली के नीचे सूखी मरुस्थली धरती