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Sunday 14 May 2017

हरिद्वार पर फोटो-ब्लॉग - 1/3

समुद्र मंथन के बाद अमृत का घड़ा लेकर गरुड़ ने देवलोक की ओर उड़ान भरी तो अमृत की कुछ बूँदें छलक कर हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में गिरीं. इस कथा से हरिद्वार की मान्यता जानी जा सकती है. शिवालिक पहाड़ियों और गंगा तट के बीच बसा तीर्थ हरिद्वार, दिल्ली से 225 किमी दूर है. समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 250 मीटर है. यहाँ का तापमान मौसम के अनुसार 5 से 40 डिग्री तक जा सकता है. सितम्बर से अप्रैल तक घूमने के लिए अच्छा मौसम है. हर तरह की धर्मशालाएं और होटल यहाँ उपलब्ध हैं. तीर्थ होने के कारण बारहों महीनें यात्रियों का आना जाना लगा रहता है.

गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से शुरू होती है और लगभग 250 किमी की पहाड़ी यात्रा करके हरिद्वार पहुँचती है. यहाँ से गंगा की मैदानी यात्रा शुरू हो जाती है. इसीलिए हरिद्वार का एक और नाम है गंगाद्वार. प्राचीन काल में यहाँ कपिल ऋषि ने तपस्या की थी इसलिए हरिद्वार को कपिलस्थान भी कहा गया है. एक और नाम मायापुरी भी पुराने समय में प्रचलित रहा है.

हरिद्वार के नाम की एक और रोचक जानकारी मिली कि हर हर महादेव याने शिव भक्त इसे हरद्वार कहते हैं. जबकि हरि याने विष्णु भक्त इस स्थान को हरिद्वार कहते हैं.

उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा का द्वार हरिद्वार ही है. हरिद्वार का सबसे पवित्र और प्रसिद्द घाट है हर की पौड़ी( या हर की पैड़ी ). कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तहरी ने यहाँ गंगा तट पर तपस्या की थी. राजा विक्रमादित्य ने उनकी याद में ईसा पूर्व पहली शताब्दी में ये घाट बनवाया था जो कालान्तर में हर की पौड़ी कहलाया.

हर की पौड़ी की शाम की आरती बड़ी आकर्षक लगती है. साथ ही घाट पर 24 घंटे का मेला ही लगा रहता है. मुंडन भी यहीं है, पूजा पाठ भी और अस्थि प्रवाह भी. गंगा सब कुछ समेट लेती है. दिल्ली, बिहार, राजस्थान, गुजरात, बंगाल और यहाँ तक की दक्षिण भारत से भी भक्तगण आते रहते हैं. बच्चे, बूढ़े और जवान, पण्डे, साधू संत, बहरुपिए, जेबकतरे, मांगने वाले, बेचने वाले, तरह तरह के कपड़े, तरह तरह के चेहरे याने पूरी मानवता का दर्शन हर की पौड़ी पर हो जाता है.

इस बार सुबह के चार घंटे घाट पर मेला देखते देखते हुए ही गुज़ार दिए. बहुत से फोटो लिए जिन्हें तीन भागों में प्रस्तुत किया है और यह पाहला भाग है:


1. हर की पौड़ी. ये घंटाघर 1938 में बना था और तब से अब तक इसने करोड़ों लिटर पानी बहते देखा होगा. करोड़ों लोगों ने डुबकी मार ली होगी.  'धर्म किये धन ना घटे नदी ना घट्टे नीर, अपनी आंखन देखि ले यों कथि कहिहें कबीर'  

2. हर की पौड़ी से आगे बढ़ता शहर. साफ़ सफाई बढ़िया होती और रख रखाव अच्छा होता तो और भी सुंदर हो सकता है  

3. गंगा से निकली एक धार हर की पौड़ी से गुज़रती है और आगे अपर गंग नहर के रूप में मोदी नगर होते हुए एटा की ओर चली जाती है. हजारों साल से निरंतर फल, फूल, खेती और मानव सेवा में लगी हुई है गंगा चाहे मानव उसका कम ही ध्यान रखता है     

4. गुड़िया रानी सामान की पहरेदारी करते करते थक गई लगती है 

5. श्रद्धांजलि के फूल प्रवाहित करने की तैयारी 

6. चदरिया झीनी रे झीनी  

7. हर की पौड़ी पर कई तरह के विधि विधान हर समय चलते रहते हैं. 'कहना था सो कह दिया अब कुछ कहा ना जाय, एक रहा दूजा गया दरिया लहर समाय' - कबीर 

8. नियम तो हर की पौड़ी में भी वही है - महिलाऐं शौपिंग करेंगी और पुरुष जेब ढीली करेंगे 

9. जल पुलिस और थल जेबकतरे - हम आस पास हैं!

10. गंगा स्नान हो गया है और मोबाइल पर सूचना दी जा रही है तब तक पतिदेव कपड़े सुखा लेंगे  

11. भांत भांत के रंग भांत भांत के चोले

12. कोऊ काहे में मगन कोऊ काहे में - चिलम का सुट्टा, स्नान के बाद कान की सफाई या फिर यूँ ही विश्राम. 'माला फेरत जुग भया, फिरा ना मन का फेर, कर का मनका डार दे मन का मनका फेर' -कबीर                   

13. तीन सौ साल पुराना बरगद और श्री महंत केदार पुरी जी का धूना याने 24 घंटे लकड़ी जलती रहती है, धुआं उठता रहता है और बाबा जी भस्म लगाते रहते हैं. 'चाह मिटी चिंता मिटी मनवा बेपरवाह,  जा को कुछ ना चाहिए वा ही शहनशाह' - कबीर     

14. आरती का समय 





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