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Sunday 25 March 2018

बुद्ध का मार्ग - पांच तरह के भार

पांच तरह के भार 

गौतम बुद्ध ने जीवन को दुःख भरा बताया और कहा की इसका मूल कारण तृष्णा है. ये तृष्णा याने आसक्ति या चाहत या craving जुड़ी है स्वयं से, स्वयं की काया से, स्वयं के विचारों से और स्वयं की भीतरी दुनिया से. स्वयं सुख भोगने की इच्छा, बारम्बार आनंद भोगने की इच्छा आसानी से छूटती नहीं है. मन से सदा जीवित रहने की इच्छा जाती नहीं हालांकि ये सभी इच्छाएँ आखिर में दुःख ही देती हैं. गौतम बुद्ध ने इस विषय को बहुत महत्व दिया है और उस पर अपने प्रवचनों में कई बार अलग अलग तरीके से विस्तार से बताया है. तृष्णा, शारीरिक और मानसिक दशाओं के विश्लेषण के लिए गौतम बुद्ध ने 'स्कन्ध' का जिकर किया है. स्कन्ध का शाब्दिक अर्थ है खंड, कन्धा, स्तम्भ, या pillar. इनको समझ लेने से बौद्ध दर्शन को आगे समझने में सहायता मिलेगी. धम्म के उपदेशों में बताए गए पंचखंड या पांच स्कन्ध - five aggregates /  five constituents इस प्रकार हैं:

रूप स्कन्ध - पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु चार महाभूत हैं और इनके संयोग से बना है - रूप / form / material.  इन चारों महाभूतों के गुणों और इनके कार्यों को रूप स्कन्ध कहते हैं.     
रूप के कारण जो हमें सुख और आराम मिलता है वह रूप का गुण है. ऐसे गुणों से हम चिपके रहना चाहते हैं और ना मिलें तो परेशान हो जाते हैं.
रूप का अस्थाई होना और परिवर्तनशील होना रूप का दोष है. ये दोष दुःख का कारण है. इन दोषों से हम दूर रहना चाहते हैं और दूर ना हो पाने पर दुखी होते हैं.
रूप अतीत, वर्तमान और भविष्य, अंदर या बाहर, सूक्ष्म और स्थूल है, दूर है और नज़दीक है.
रूप पर किसका प्रभाव पड़ता है? रूप पर धूप, बारिश, भूख, प्यास, मक्खी, मच्छर इत्यादि का प्रभाव पड़ता है.

वेदना स्कन्ध - सुख या दुःख जैसी संवेदनाओं /अनुभवों - pleasant & unpleasant sensations / feelings को वेदना स्कन्ध कहते हैं.
वेदना स्कन्ध की जानकारी कैसे होती है? संपर्क से. संपर्क किससे? आँखों से देखकर, कान से सुनकर, नाक से सूंघ कर, जीभ से स्वाद लेकर, त्वचा के स्पर्श से या मन के किसी विचार से.
वेदनाएं तीन प्रकार की हैं - सुखद वेदना, दुःखद वेदना और असुखद-अदुःखद / neutral महसूस होने वाली वेदना.
वेदना भी अतीत, वर्तमान और भविष्य, मन या शरीर पर, सूक्ष्म और स्थूल, दूर और नज़दीक है.

संज्ञा स्कन्ध - लाल, पीला, छोटा, बड़ा जैसा ज्ञान - abstract ideas / perceptions को संज्ञा स्कन्ध कहते हैं.
संज्ञा का भी अतीत, वर्तमान और भविष्य है, ये सूक्ष्म और स्थूल है, दूर और नजदीक है.

संस्कार स्कन्ध - पाप, पुण्य, बुरा, भला, स्वर्ग, नर्क आदि भावनाओं या धारणाओं - fabrications of mind / tendencies of mind को संस्कार स्कंध कहते हैं.

विज्ञान स्कन्ध - नियमों को समझना और जानना विज्ञान स्कन्ध है. पाली भाषा में विज्ञान को 'विन्नान' और इंग्लिश में mental power / cognition / consciousness कहा गया है.

रूप स्कन्ध धरती, जल, वायु और अग्नि जैसे गुणों का भौतिक पुंज है और अन्य चार मानसिक पुंज हैं या 'नाम' हैं. दोनों मिल कर नाम-रूप कहलाते हैं.

जैसे पहिये, धुरा, नेमी के समूह को जोड़ कर रथ की जानकारी होती है वैसे ही इन पांच स्कन्धों को मेल कर कोई जीव या person जाना जाता है. इन्हीं स्कन्धों से हम बने हैं, इन स्कन्धों की वजह से हम चैतन्य हैं और इन्हीं स्कन्धों की सहायता से दुनिया से रूबरू होते हैं. इन पांच स्कन्धों से ही मोह या आसक्ति या उपादान होता है इसलिए इन्हें पांच उपादान-स्कन्ध कहा जाता है.

इन पांच उपादान-स्कन्ध के मूल या जड़ में है अपनी इच्छा / तम्मना या craving. मन में कई बार ऐसा आता है की आगे चलकर मैं ऐसे रूप वाला बनूँगा / ऐसी वेदना वाला बनूँगा / ऐसी संज्ञा वाला हो जाऊँगा / फलां तरह के संस्कार धारण कर लूँगा / फलां तरह का विज्ञान अपना लूँगा. या फिर ऐसा नहीं होने दूंगा. यही तृष्णा का खेल है.

इन पांच उपादान-स्कन्ध से अलग कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है,  इन स्कन्धों से अलग आत्मा भी प्रत्यक्ष नहीं है और अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है.

ये पाँचों स्कन्ध परिवर्तनशील - changing phenomena हैं और अस्थाई हैं. इसलिए  इन पांच स्कन्धों से मोह करना और इन पांच स्कन्धों वाले जीव से लगाव लगाना दुःख का कारण है.

श्रावस्ती में दिए उपदेश ( संयुक्त निकाय > भार सुत्त ) में गौतम बुद्ध ने कहा की इन पांच उपादान-स्कन्धों को मानव के ऊपर भार ही कहना चाहिए. जो लोग काम-तृष्णा, भव-तृष्णा और विभव-तृष्णा से जुड़े हैं वे लोग भार ही उठा रहे हैं और दुखी हो रहे हैं. जिन्होंने तृष्णा को निरुद्ध कर दिया, त्याग दिया या उससे मुक्ति पा ली है तो समझो उन्होंने भार उतार कर फेंक दिया.

ये पांच स्कन्ध भार हैं और पुरुष भारहार ( भार वाहक )है,
भार का उठाना लोक में दुःख है, भार का उतार देना सुख है!

जो भार के बोझे को उतार, दूसरा भार फिर नहीं लेता है,
वो तृष्णा को जड़ से उखाड़, दुखमुक्त निर्वाण पा लेता है!

बढ़ते रहो 



2 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/03/3.html

Unknown said...

पांच स्कधं पर गौतम बुद्ध ने जो उपदेश दिया और समझकर मुझे आनंद भी और दुःख भी हुआ करतो की किसीभी चीज कि अपेक्षा ना करना उसके कारण हमने ना सुख ना दुःख व्यक्त करना यही है पांच स्कध.